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________________ प्रस्तावना पुराकर्म, स्थापना सन्निधापनम् । पूजा पूजाफलं चेति, षड्विधं देवसेवनम् ॥' इसके अतिरिक्त बहुसंख्यक आचार्यों ने नागरिक गृहस्थों के जो दैनिक कर्तव्य शास्त्रों में दर्शाये हैं। उनमें कृतिकर्म (पूजाकम का निर्देश अवश्य किया है। इससे यह सिद्ध होता है कि आत्मशुद्धि के लिए पूजाकर्म का महत्त्वपूर्ण स्थान है। गृहस्थाचार में अति आवश्यक दैनिक कर्तव्यों के कुछ आचार्य कथित प्रमाण : श्रावक के दैनिक आवश्यक कर्मों में आचार्य कुन्दकुन्द ने प्राभृतग्रन्थ में तथा अन्य आचार्यों ने वसंगचरित और हरिवंशपुराण में पूजा, दान, तप एवं शील ये चार दैनिक कर्म दशाये हैं। भगवज्जिनसेनाचार्य ने इनको अधिक व्यापक बनाकर-(1) पूजा, (2) वार्ता, (3) दान, (4) स्वाध्याय, (5) संयम, (6) तप–इनका श्रावक के आवश्यक कर्म (कर्तव्य) वर्णित किये हैं। आचार्य सोमदेव और पद्मनन्दि ने (1) देवपूजा, (2) गुरूपासना, (3) स्वाध्याय, (4) संयम, (5) जप, (6) दान-ये छह आवश्यक कर्म घोषित किये हैं। इन सभी आचार्यों ने देवपूजा को आवक का प्रथम आवश्यक कर्तव्य बताया है। परमात्मप्रकाश (पृ. 168) में तो यहाँ तक कहा गया है कि-"तूने न तो मुनिराजों को दान ही किया, न जिन भगवान की पूजा हो की, न पंचपरमेष्ठियों को नमस्कार किया, तब तुझे मोक्ष का लाभ कैस होगा"। इस कथन से यह स्पष्ट हो जाता है कि भगवान की पूजा श्रावक (गृहस्थ) को अवश्य करना चाहिए। भगवान् की पूजा मोध-प्राप्ति का एक उपाय है। ___ आदिपुराण पर्व 38 में पूजा कं चार 'भेद बताये हैं-1) नित्यपूजा, (2) चतुर्मुख पूजा, (3) कल्पद्रुम पूजा, (4) आष्टाहिनक पूजा। अपने घर से गन्ध, पुष्प, अक्षत ले जाकर जिनालय में जिनेन्द्रदेव की पूजा करना सदार्चन अर्थात नित्यमह (पूजा) कहलाता है। मन्दिर और मूर्ति का निर्माण कराना, मुनियों की पूजा करना भी नित्वमह कहलाता है। मुकुटबद्ध राजाओं द्वारा की गयी पूजा चतुर्मुख पूजा कहलाती हैं। चक्रवति द्वारा की आनेवाली पूजा कल्पद्रुम पूजा होती है और आष्टाहिनका पर्व में नन्दीश्वर द्वीप में देवों द्वारा की जानेवाली पूजा आप्टाहिनक पूजा कहलाती हैं। पूजा अष्टद्रव्य से की जाती है-(1) अल, (2) चन्दन, (3) अक्षत, (4) पुष्य, (6) नैवेद्य, (6) दीप, (7) धूप, (8) फल। इस प्रकार के उल्लेख प्रायः सभी आर्ष ग्रन्थों में मिलते हैं-तिलोयएण्णत्ति (पंचम अधिकार, गाथा 102 से 111 तक) में नन्दीश्वर द्वीप में आष्टाह्निका पर्व में देवों द्वारा भक्तिपूर्वक की जानेवाली पूजा का वर्णन है। उसमें अष्ट द्रव्यों का वर्णन आया है। थक्ना रीका में ऐसा ही वर्णन है। 1. शानपीठ पूजांजलि : प्रास्ताविक बक्तव्य, पृ. 27 । जैन पूजा-काव्यों का महत्व :: 349
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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