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________________ करते हुए अनेक महल, उद्यान एवं दुर्ग इन सबका निर्माण कराया। भग्न-किले इस समय भी दृष्टिगत होते हैं। इन 20 वर्षों की अवधि में मान्यखेट जैनधर्म का एक प्रमुख केन्द्र रहा है। उस युग की पाषाण और कांस्य निर्मित मूर्तियाँ आज भी यहाँ दृष्टिगत हो सकती हैं। क्षेत्र-दर्शन मलादेत प्रा में 'नेमियम : सनि सामः, दो मन्दिर है जो कि नवौं शताब्दी का मान्य किया जाता है। इसमें प्रवों से ।।वीं शताब्दी तक की अनेक मूर्तियाँ विराजमान हैं। इस मन्दिर के अन्तर्गत एक कांस्य का मन्दिर है जिसमें चारों दिशाओं में तीर्थंकर आदि की 15 मूर्तियों विद्यमान हैं। जैन साहित्य का केन्द्र संस्कृत प्राकृत और कन्नड़ साहित्य की दृष्टि से मलखेड (मान्यखंट) अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है। राजा अमांघवर्ष प्रथम का द्वितीय नाम नृपतुग भी था। उसने स्वयं संस्कृत में 'प्रश्नोत्तर रत्नमालिका' नामक ग्रन्धी की रचना की थी, जिसका विषय नैतिक आचार धा। यह ग्रन्थ दूर-दूर तक लोकप्रिय हो गया। कहा जाता है कि इस ग्रन्थ का अनुवाद तिब्बती भाषा में भी हुआ था। इसी कारण से इस राजा की विदत्ता, लोकप्रियता एवं प्रभुत्व का अनुमान किया जा सकता है। इस रचना के अन्तिम छन्द से ज्ञात होता है कि नृप अमाधवषं ने राजपाट त्यागकर मुनिदीक्षा ग्रहण कर ली थी। प्रामद्ध 'शाकटायन याकरण' पर भी आपने अमोघवृत्ति नामक टीका लिखी थी, एसा इस टीका के नाम से प्रकट होता है अथवा यह टीका इनके नाम से प्रसिद्ध हुई। अमोघवर्ष के शासनकाल में ही महावीराचार्य ने स्वयं 'गणितसार' ग्रन्थ की रचना किया था। कन्नडभाषा में अमोघवर्ष ने 'कविराज पान नामक (अलंकार, छन्दशास्त्र सम्बन्धी) ग्रन्य का प्रणयन किया था। यह ग्रन्थ आज भी उपलब्ध है। इसमें गोदावरी नदी से लेकर कावेरी नदी तक विस्तृत कानड़ी प्रदेश का प्रसंगोपात्त सुन्दर वर्णन है। इससे इस प्रदेश की तत्कालीन संस्कृति का भी अच्छा परिचय प्राप्त होता है। राष्ट्रकूट नरेशों के शासनकाल में जैन साहित्य की प्रशंसनीय उन्नति निरन्तर होती रही। इस ऐतिहासिक पवित्र क्षेत्र के मूलनायक 22वें तीर्थंकर भगवान् नेमिनाथ हैं। इसलिए जैन पूजा-काव्य के माध्यम से भगवान् नेमिनाथ का नित्य पूजन-अर्चन और आरती की जाती है। जैन पूजा-काव्यों में तीर्थक्षेत्र :: ।
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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