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________________ ऐसे प्रभू के दर्श पाये, धन्य दिन यह वार है होकर प्रकट महिमा दिखायी, नमन शत शत वार है।। मुक्ति का वर्णन सम्मेद शल प्रभु नामी, है ललित कर भिरामी। फाल्गुन सुदि सप्तमि चूरे, शिवनारि वरी विधि करे। पत्ता छन्द-चन्द्रप्रभ गुणवर्णन श्री चन्द्रजिनेशं, दुखहरलेतं, सब सुख देत, मनहारी। गाऊँ गुणमाला, जग उजियाला, कीति विशाला, सुखकारी।।' तारंगा सिद्धक्षेत्र तारंगा एक प्रसिद्ध सिद्धक्षेत्र है। यहाँ से वरदत्त, बरांगदत्त, सागरदन आदि सार्ध तीन कोटि मुनिराजों ने निर्वाण (परमात्मपद) प्राप्त किया था। इस तीर्थ के नाम तारानगर, तारापुर, तारागढ़, तारबर, तारंगा आदि इतिहास में उपलब्ध होते हैं। प्रथम या द्वितीय शती की रचना प्राकृत 'निर्वाणकाण्टु' में इसके विषय में निम्नलिखित गाथा उपलब्ध होती है वरदतां य वरंगो सायरदत्तोय तारबरणयरें। आहुठ्ठय कोडीओ, णिव्वाणगया णमो तेसिं॥' तारंगा क्षेत्र का पूजा-काव्य विक्रम की वीसवीं शताब्दी के कवि दीपचन्द्र न तारंगा तीथं पूजा काय का सृजन किया है। इस पूजा-काव्य में 19 पद्य पाँच प्रकार के छन्दों में निबद्ध किय गये हैं जो प्रसाद गुण, भक्ति रस, शब्दालंकार, उपमा, रूपक, उप्रेक्षा, स्वभावोक्ति आदि अलंकारों और सरलरीति के माध्यम से शान्तरस की वर्षा करते हैं। वरदत्तादिक आट कोटि मुनि जानिए मुक्ति गये तारंगागिरि से मानिए। तिन सब को शिरनाय सुपूजा ठानिए भवदधितारन जान सुविरद बखानिए॥" 1. बृहत् महावीर कौतन : पं. पंगलसेन, सन् 1971, पृ. 311-811 2. वृहद् महावीर कीर्तन : सं. मंगलसेन विशारद, प्र. -बारपुस्तकालय पहावीर जी [राज.). पृ. 976. सन् 1971 3. तयैव, पृ. 751-734 जैन पूजा-काव्यों में तीर्थक्षेत्र :: 927
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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