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________________ एवं वनस्थली अत्यन्त नयनाभिराम है। यह पर्वतीय पर्यटन केन्द्र एवं आरोग्यप्रद स्थान (सेनिटोरियम) है। यह स्थान समुद्र के समतल से 5350 फीट उन्नत है। पर्यटन केन्द्र होने के कारण शासन ने इस क्षेत्र का उपयोगी विकास किया है। यहाँ पर विश्राम एवं विराम के लिए उपयोगी सुविधाएँ उपलब्ध हैं। अर्बुद के मूलनायक भगवान आदिनाथ का पूजाकाव्य श्री आदिनाथ पूजा - काव्य की रचना कवि राजमल पवैया ने भगवद्भक्ति से ओत-प्रोत होकर सम्पन्न की है। इसमें 26 काव्य रचना पाँच प्रकार के छन्दों के माध्यम से की है। इस पूजा काव्य में शब्दालंकार अर्थालंकार, प्रसादगुण, पांचालीरीति एवं काव्य-लक्षणों के द्वारा भक्ति रस का वर्णन किया गया है। इसके पटन मात्र से आत्मशक्ति का अनुभव होता है। उदाहरणार्थ कुछ पद्यों का दिग्दर्शन इस प्रकार हैजय आदिनाथ जिनेन्द्र जय जय प्रथम जिन तीर्थंकरम् । जय नाभिसुत मरुदेविनन्दन ऋषभप्रभु जगदीश्वरम् । जब जयति त्रिभुवनतिलक चूड़ामणि वृषभ विश्वेश्वरम् देवाधिदेव जिनेश जय जय महाप्रभु परमेश्वरम् ॥' अतिशय क्षेत्र देहरा तिजारा श्री चन्द्रप्रभ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र देहरातिजारा राजस्थान प्रान्तीय अलवर जिले का एक सुन्दर नगर है। यह अलवर के उत्तर-पूर्व में 50 कि.मी. तथा मथुरा के उत्तरपश्चिम में 96 कि.मी. की दूरी पर अवस्थित है। इसके चारों ओर सघन वृक्षावली और उद्यान हैं। इसके चारों और सघन वृक्षावली और उद्यान हैं। अनुश्रुति (जनश्रुति) के अनुसार इस नगर की स्थापना यदुवंश नृप तेजपाल ने सम्पन्न की थी। काँव सुमतिलाल ने भक्तिभाव से प्रेरित होकर तिजारा तीर्थ के मूलनायक भगवान चन्द्रप्रभ के पूजा काव्य को रचना कर अपने जीवन को सार्थक माना है । इस पूजा - काव्य में 35 पद्य छह प्रकार के छन्दों में निबद्ध किये गये हैं। इस काव्य में शब्दालंकार, अर्थालंकार, प्रसादगुण और पांचालीरीति के माध्यम से शान्तरस की धारा प्रवाहित की गयी है। इसके पढ़ने से ही चित्त प्रफुल्लित हो जाता है। उदाहरणार्थ कतिपय पद्यों का दिग्दर्शन नमस्कारपूर्वक चन्द्रप्रभ की स्थापना चर चन्द्र काम कलंक वर्जित, नेत्र मनहि लुभावने शुभ ज्ञान केवल प्रकट कीनों, घातिया चारों नें । 1. जैन पूजांजलि : रचयिता राजमल पर्यया, प्र. - जैन ग्रन्थमाला विदिशा, सन् 1985, पृ. 150-154 326 जैन पूजा काव्य एक चिन्तन ."
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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