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(1) श्री महावीर तीर्थ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीर जी राजस्थान प्रान्तीय सवाई माधोपुर जिले में विद्यमान है। पश्चिमी रेलवे की देहली-बम्बई मुख्य लाइन पर भरतपुर और गंगापुर रेलवे स्टेशनों के मध्य 'श्री महावीर जी' नाम का रेलवे स्टेशन है। रेलवे स्टेशन से जैनमन्दिर 6 कि.मी, दूरी पर है। क्षेत्र के पूर्व की ओर श्री महावीर के चरणों को प्रक्षालित करती हुई गम्भीर नदो बहती है। इस पर निर्मित पुल के माध्यम से प्रत्येक ऋतु में पक्की सड़क द्वारा यातायात की सुविधा है। यहाँ नल, बिजली, जल, पोस्ट ऑफिस, तारवर, टेलीफ़ोन, बैंक आदि सभी प्रकार की आधुनिक दैनिक सुविधाएँ उपलब्ध हैं। श्री महावीर क्षेत्र का इतिहास
चौबीगने तीर्थंकर भगवान महावीर कादिर चौर- पु. के अति समीप है। इस क्षेत्र पर भगवान महावीर की जिस प्रतिमा के अतिशय की प्रसिद्धि है उस प्रतिमा की भूगर्भ से प्राप्ति के विषय में अद्भुत किंवदन्ती प्रचलित है।
विक्रम की 16वीं तथा 17वीं शताब्दी के मध्य भगवान महावीर की मुंगावर्ण वाली जिस प्रतिमा का टीलं से निर्गमन हुआ था वह इसी स्थान पर किसी प्राचीन मन्दिर में विराजमान थी, किन्तु इन्हीं अज्ञात कारणों से मन्दिर के नष्टभ्रष्ट होने पर वह भूगर्भ में ही समा गयी थी अथवा किसी दूरस्थ मन्दिर (दि. जैन) में विराजमान थी और मुगलसत्ता में नष्ट-भ्रष्ट होने के भय से वह प्रतिमा इस स्थान पर आनीत कर भूगर्भ से सुरक्षित कर दी गयी, इस प्रकार अनुमान किये जाते हैं।
इस मूर्ति को शिल्पयोजना और रचना शैली, गुप्तोत्तर काल की प्रतीत होती है। मूर्ति का निर्माण ठोस ग्रेनाइट (पाषाण) से न होकर रवादार बलुए (बालुमय) पपाषाण से हुआ है इसलिए वह मूर्ति पर्याप्त यिस चुकी है। यह पाषाण ग्रेनाइट की अपेक्षा कमज़ोर होता है और वर्षों तक वह मूर्ति क्षारवाली मिट्टी के पध्य में दबी रही है जिससे पाषाण रुक्ष कमजोर हो गया है अतएव इसकी सुरक्षा होना अत्यावश्यक हो जाता है।
तीर्थंकर महावीर को जयन्तो के पुण्य अवसर पर प्रतिवर्ष इस क्षेत्र पर चैत्र शुक्ला ।। से वैशाख कृष्या 2 तक विशाल मेलापक का आयोजन होता है। इस अवसर पर भगवान महावीर की रथायात्रा का प्रदर्शन होता है। इस समय दि. जैन यात्रियों के अतिरिक्त मीणा, गूजर, जादव आदि वर्ग भी अत्यधिक संख्या में महावीर स्वामी के दर्शन-पूजनार्थ एकत्रित होते हैं। इस मेलापक में प्राय: 2-3 लक्षप्रमाण व्यक्ति उपस्थित होते हैं।
इस प्रकार इस अतिशय क्षेत्र श्री महावीर जी का महत्त्व पौराणिक, सामाजिक
जैन पूजा-काव्यों में तीर्थक्षेत्र : 32