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________________ पावागिरि सिद्धक्षेत्र का पूजा-काव्य पं. विष्णुकुमार द्वारा भक्तिभाव से पावागिरि सिद्धक्षेत्र पूजा-काव्य की रचना की गयी है। इस काव्य में 27 काव्यों की रचना 6 प्रकार के छन्दों में निबद्ध है। इसमें पावागिरि का परिचय, इतिहास, महत्त्व और अतिशय दर्शाया गया है। इस काव्य में अलंकारगुण तथा सरलसांत से शान्तरस को तरंगित किया मया है। वरनगरी के निकट सुसुन्दर पावागिरिवर जाना, ताके समीप सुनदी चेलना, तट ताका परमाना। सुवरणभद्र आदि मुनिचारों, तहँ ते मोक्ष विराज। हम थापन कर पूजें तिनको पापताप सब भाले।' सिद्धवरकूट क्षेत्र सिद्धवरकूट सिद्धक्षेत्र है। इन्दौर से मान्धाता (ओंकारेश्वर) 77 कि.मी. दूर है, इतना ही प्रमाण खण्डवा से होता है। ओंकारेश्वर रोड (अजमेर-खण्डवा के मध्य रेलवे स्टेशन) से मान्धाता 11 कि.मी. की दूरी पर है। वहाँ से नौका द्वारा सिद्धवरकूट क्षेत्र प्राप्त होता है। बड़वाह (पश्चिमी रेलवे के इन्दौर-खण्डवा स्टेशनी के मध्य एक स्टेशन) से फेअर वेदर रोड द्वारा सिद्ध वरकूट 19 कि.मी. प्रमाण है। इस मार्ग से नर्मदा नदी नहीं मिलती है। मान्धाता में क्षेत्र की धर्मशाला है और बड़वाह में भी जैनधर्मशाला है। ये दोनों धर्मशालाएँ बस स्टैण्ड के निकटस्थ हैं। सिद्धवरकूट सिद्धक्षेत्र की श्रेणी में प्रसिद्ध है। इस विषय का समर्थन अनेक आचार्यों ने किया है। प्राकृत निर्वाण काण्ड स्तोत्र में सिद्धक्षेत्र के सम्बन्ध में इस प्रकार उल्लेख प्राप्त होता है रेवाणइये तीरे पच्छिमभायम्मि सिद्धवराई । दो चक्की दह कये, आहुठ्ठयकोडि णिचुदे दे।' रेयानदी सिद्धवरकूट, पश्चिम दिशा देह जहाँ छूट। द्वयचक्री दश कामकुमार, आट कोटि वन्दी भवपार बोध प्राभृत की गाथा नं. 27 की व्याख्या में मट्टारक श्रुतसागर ने इस क्षेत्र का नाम सिद्धकूट लिखा है। भट्टारक गुणकीर्ति, विश्व भूषण आदि साहित्यकारों ने मी इस क्षेत्र का नाम 'सिद्धकूट' ही लिखा है। प्राकृत निर्वाणकाण्ड की उपर्युक्त गाथा 1. वृहट्ट महावीर कीर्तन, पृ. 344-777 2. तथैव, निर्याण प्राकृत, पृ. 277 3. तथ्य, निर्वाणकाण्ड प्राकृत. पृ. 277 जैन पूजा-काम्यों में तीर्थक्षेत्र :: 321
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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