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________________ श्री मक्सी पारसनाथ, मन बच ध्यावत हाँ मम जन्म जरा मृतु नाश तुम गुण गावत हों।' चूलगिरि सिद्ध क्षेत्र का परिचय और पूजा-काव्य श्री दि, जैन सिद्धक्षेत्र चूलगिरि मध्यप्रदेशीय निमाड़ जिले के अन्तर्गत बटवानी नगर से 7 कि.मी. की दूरी पर अवस्थित है। यह 'बावन राजा क्षेत्र' नाम से अत्यन्त प्रसिद्ध है। बड़वानी जाने के लिए इन्दौर, मऊ, खण्डवा, सनावद, धूलिया और दोहद इन रेलवे स्टेशनों में बसें उपलब्ध होती हैं। बड़वानो से क्षेत्र तक पक्का मार्ग है। चूलगिरि दि. जैन सिद्धक्षेत्र है। इस क्षेत्र से इन्द्रजीत मुनिराज कुम्भकर्ण मुनि तथा अन्य अनेक दि. जैन मुनि मुक्ति को प्राप्त हुए हैं। प्राकृत निर्वाणकाण्ड में इस विषय पर निम्नलिखित उल्लेख प्राप्त है। प्राकृत- बड़वानींवरणयरे, दक्खिण भायम्मि चूलगिरि सिहरे। इंदजिय कुम्भकरणो, णिव्वाणगया णमो तेति।। सारांश--बड़वानी नगर से दक्षिण की ओर झूलगिरि शिखर से इन्द्रजीत मुनि कुम्भकर्ण आदि मुनिराज मुक्ति को प्राप्त हुए, मैं उनको नमस्कार करता हूँ। भट्टारक सुमति सागर ने इस क्षेत्र की मूर्ति को 'यावनगजा' कहा है। बावनगजा प्रतिमा का सम्पूर्ण पाप इस प्रकार है(1) मूर्ति को ऊँचाई 84 फीट (2) एक मुजा से दूरी भुजा का विस्तार 29 फीट 6 इंच (9) भुजा से उँगलो तक (कन्धे से उँगली तक) 46 फीट 2 इंच (4) कमर से एड़ी तक 37 फीट (5) सिर का घेरा 26 फीट (6) चरणों की लम्बाई 13 फीट 9 इंच (7) नासिका की लम्बाई 5 फीट 11 इंच (8) आँख को लम्बाई 9 फीट 9 इंच (9) कान की लम्बाई 9 फीट 8 इंच (10) एक कान से दूसरे कान की दूरी 17 फीट 6 इंच (11) चरण के पंजे की चौड़ाई 5 फीट इस पर्वत की तलहटी में 19 मन्दिर, । पानस्तम्भ, 1 छत्री और दो गुफ़ाएँ ये सभी पर्वत की शोभा को वृद्धिंगत करते हैं। इस क्षेत्र पर जितनी दि, जैन मूर्तियाँ हैं, उनमें दो मूर्तियों मुनिसुव्रतनाथ तीर्थंकर की, वि.सं. 1131 की प्रतिष्टित हैं। ये ही मूर्तियाँ इस तीर्थ की प्राचीनतम १. गृहद् महावीर कीर्तन : सं. पं. मंगलसेन विशारद, पृ. 527-830 जैन पूजा-काम में लीर्थक्षेत्र ::319
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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