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________________ इस काव्य में 47 पद्य सात प्रकार के छन्दों में निबद्ध किये गये हैं। इस काव्य में उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, स्वभायोक्ति अलंकारों के द्वारा, प्रसादगुण, पांचालीरीति के माध्यम से शान्तरस की धारा प्रवाहित की गयी है। उदाहरणार्थ कतिपय पद्यों की विशेषताकुण्डलपुर क्षेत्र का वर्णन श्री कुण्डलपुर क्षेत्र सुभग अतिसोहनो कुण्डलसम सुखसदन हृदय मन्मोहनो। पावन पुण्य निधान मनोहर धाम है। सुन्दर आनन्दभरण मनोज्ञ ललाम है। दर्शन करने का फल गिरि ऊपर जिन भवन पुरातन है सही निरखि मुदित मन भविक लहत आनदमहीं। अति विशाल जिन बिम्ब ज्ञान को ज्योति हैं दर्शन से चिरसंचित अघक्षय होत है।' मढ़िया अतिशय क्षेत्र (जबलपुर) __जलबपुर नगर को गणना मध्यप्रदेश के प्रमुख नगरों में की जाती है। यह औद्योगिक, राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक सभी दृष्टियों से महाकौशल का सबसे बड़ा नगर है। जबलपुर नगर से 5 कि.मी. दूर, जबलपुर-नागपुर रोड पर, दक्षिण-पश्चिमी की और पुरवा तथा त्रिपुरी ग्राम के मध्य में एक लघु पर्वत है। यह धसतल से 300 फीट उन्नत है। 'पिसनहारी की मढ़िया' इसी पर्वत पर शोभित है। इस पर्वत पर जाने के लिए कुल 263 सोपान परम्परा वाला मार्ग हैं। इसके समक्ष ही मेडिकल कॉलेज है। इस क्षेत्र का सुधार तथा विकास सन् 1943 में श्री गणेश प्रसाद जी वर्णी द्वारा संस्कृत तथा हिन्दी साहित्य के प्रचार-प्रसार हेतु गुरुकुल एवं छात्रावास की स्थापना हुई। मढ़िया क्षेत्र के मूलनायक श्री पद्मप्रभ तीर्थंकर का पूजा-काव्य __अठारहवीं शतादी के कविवर वृन्दावन ने भगवान् पद्मप्रभ के पूजा-काव्य का सृजन कर परमात्मा के प्रति स्वकीय भक्ति भाव को व्यक्त किया है। कविवर द्वारा 1. बृहट पहावीर कीर्तन, पृ. 761-766 जैन पूजा-काव्यों में तीर्थक्षेत्र :: 917
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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