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________________ कुण्डलपुर वैशाली नृप सिद्धार्थराजगृह जन्म लिया । माता त्रिशला धन्य ही गयी वर्धमानरवि उदय हुआ । महावीर का अर्चन दुखी जगत के जीवों का प्रभु के द्वारा उपकार हुआ, निजस्वभाव जप मोक्ष गये, प्रभु सिद्ध स्वपद साकार हुआ। मैं भी प्रभु के जन्म महोत्सव पर पुलकित हो गुण गाऊँ अष्ट द्रव्य से प्रभु चरणों की पूजन करके हर्षाॐ।। मन्दारगिरितीर्थक्षेत्र और तत्सम्बन्धी पूजा-काव्य मन्दारगिरितीर्थ परिचय - मन्दारगिरि तीर्थ क्षेत्र विहार प्रदेश के भागलपुर जिले में भागलपुर से 43 कि.मी. दूर है। मन्दारगिरि तीर्थ पूजा मन्दारगिरि तीर्थक्षेत्र के पूजा-काव्य की रचना कवि मुन्नालाल द्वारा की गयी हैं। इस काव्य में चालीस पद्यों की रचना छह प्रकार के छन्दों में की गयी है। इसमें उत्प्रेक्षा, रूपक, उपमा आदि अलंकारों के प्रयोग से शान्तरस की वर्षा आनन्ददायिनी है। पद्म में प्राण गुण को तक है। पूजा-काव्य के कुछ सरस पद्य हैं 2. रंग देश के मध्य है, चम्पापुर सुख खानी । राय तहाँ वसु पूज्य है, विजया देवी रानी ॥ मोक्ष गये मन्दार शैल के शिखर तें पर्वत चम्पा पास सु दीखत दूर लें। सो पंचकल्याणक भूमि पूजता चाव सों वासुपूज्य जिनराज तिष्ठ इत आवसों ॥। पदम द्रह को नोर उज्ज्वल, कनक भाजन में भरों मम जन्म मृत्यु जरा निवारन पूज प्रभुपद की करों । श्री वासुपूज्य जिनेन्द्र ने, गर्भ जन्म धर चम्पापुरी श्री तपस ज्ञान अरण्य शैल-मन्दार तें शिवतिय वरी ।। राजगृहीतीर्थक्षेत्र राजगृहीतीर्थ का इतिहास एवं परिचय भारत के बिहार प्रान्त में राजगृहीतीर्थ प्राचीन काल से ही प्रसिद्ध है। यहाँ जैन पूजा - काव्यों में तीर्थक्षेत्र :: 299
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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