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________________ श्री पावागढ़ (पावागिरि) पूजा-काव्य क्षेत्र-परिचय-बम्बई प्रान्त में पावागढ़ सिद्ध क्षेत्र ऐतिहासिक महत्व का है। यहाँ तालाब के किनारे दो जिनमन्दिर हैं। उनमें एक विशाल मन्दिर है जिसके प्राकार की दीवार पर कतिपय मनोज्ञ दि. जैन प्रतिमाएँ, चतुर शिल्पी द्वारा निर्मित एवं प्राचीन हैं। इस मन्दिर के सामने लवकुमार, कुशकुमार महामुनियों की चरणपादुकाएँ सं. 1337 के समय एक गुमटी में बनी हुई हैं। उनके सम्मुख एक दूसरा मन्दिर है। इस मन्दिर के आगे सीढ़ियों की दोनों तरफ़ दि. जैन प्रतिमाएँ जड़ित हैं। निकट में पर्वत की उत्तुंग चोटी है। यहीं पर लव-कुश का निर्वाण धाम है। क्षेत्रीय पूजा पावागढ़ पूजा-काव्य की रचना 'सेवक' कवि ने सं. 1967 में करके उक्त तीर्थ क्षेत्र के प्रति अपना भक्तिभाव प्रदर्शित किया है। इसमें सत्रह पद्य तीन प्रकार के छन्दों में निबद्ध किये गये हैं। उदाहरणार्थ कतिपय पद्यों का दिग्दर्शन फल प्रासक लाई, भबिजन भाई, मिष्ट सहाई भेंट करूं, शिवपद की आशा, मन हल्लासा, करहु हुलासा मोक्ष करूं। पायगिरि बन्दों, मन आनन्दों भव दुखखन्दो चितधारी, मुनि पाँच जु कोडं, भव दुख लोई, शिवमुख जोडं सुखभारी।। कर्मकाट जे मुक्त पधारे, सव सिद्धन में जोई, सुखसत्ता अरु बोधज्ञानमय, राजत सब सुख होई दर्श अनन्तो ज्ञान अनन्ती, देखें जाने सोई, समय एक में सब ही अलके, लोकालोक जु टोई। 'धर्मचन्द्र श्रावक की विनती, धर्म बड़ो हितदावी. सो कोई भविजन पूजन गायें, तन मन प्रीति लगायी। सो तेसो फल जल्दी पावे, पुण्य बढ़े दुख जावा, 'सेवक' को सुख जल्दी दीजो, सम्यक् ज्ञान जगाया।' शत्रुजय तीर्थक्षेत्र पूजा काव्य क्षेत्र-परिचय-महाराष्ट्र प्रान्त में पालीताना स्टेशन से करीब दो कीलोमीटर दूर शत्रुजय तीर्घ इस कारण से प्रसिद्ध है कि यहाँ से युधिष्ठिर, अर्जुन और भीम ये तीन मुनिराज, द्राविडदेश के राजा मानेदीक्षा प्राप्त कर तथा आट करोड़. मनिराज मुक्ति को प्राप्त हुए हैं। 1. अहत् महादोर कीर्तन पृ. 746-745 जैन पूजा काव्यां में तीर्थक्षेत्र :: 9
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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