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________________ उदयगिरि इस पर्वत पर भगवान महावीर ने अपने समवसरण में ओड़ीसा आदि अनेक क्षेत्रों के निवासी मानवों को अपनी अमृतवाणी का पान कराया था। अतः यह स्थान अतिशय क्षेत्र भी है। उदयगिरि एक सौ दश फीट ऊँचा है। इसके कटिस्थान में पत्थरों को काटकर कई गुफ़ाएँ और मन्दिर बनाये गये हैं। प्रथम 'अलकापुरी गुफ़ा' के द्वार पर हाधियों के चित्र मिलते हैं। पुनः 'जयविजय गुफ़ा' के द्वार पर इन्द्र बने हैं। आगे 'गानी नूद' नामक दर्शनीय गुफ़ा में नीचे ऊपर बहुत-सी घ्यानयोग्य अन्तर गुफ़ाएँ हैं। आगे चलकर 'गणेश गुफ़ा' के बाहर पाषाण के दो हाथी बने हुए हैं। यहाँ से लौटने पर “स्वर्ग गुफ़ा', 'मध्यमुफ़ा' और 'पाताल गुफ़ा' इन तीन गुफ़ाओं में चित्रों के साथ तीर्थंकरों की प्रतिमाएँ भी हैं। 'पाताल गुफ़ा' के ऊपर 'हाथी गुफ़ा' 45 फीट विस्तृत पश्चिमोत्तर है। यह वही प्रसिद्ध गुफ़ा है जो जैन सम्राट खारवेल के शिलालेख के कारण प्रसिद्ध है। खारवेल कलिंग देश के चक्रवर्ती राजा थे। उन्होंने भारत वर्ष की दिग्विजय की थी । उसी समय मगध के राजा पुष्यमित्र को परास्त करके, छत्र भंगार आदि वस्तुओं के साथ 'कलिंग जिन ऋषभदेव' को वह प्राचीन मूर्ति वापस कलिंग में लाये थे, जिनको नन्द सम्राट पाटलिपुत्र ले गये थे। इस प्राचीन मूर्ति को सम्राट खारपेल ने कुमारी पर्वत पर 'अहंत् प्रासाद' बनवाकर विराजमान किया था। उन्होंने स्वयं एवं उनकी रानी ने इस पर्वल पर अनेक जिनमन्दिर, जिनमूर्तियाँ, गुफ़ा और स्तम्भों का निर्माण कराया था। इसी समय अनेक धर्मोत्सव भी किये थे। सम्राट खारवेल के समय से पहले ही यहाँ निर्ग्रन्थ श्रमणसंघ विधमान था। निर्ग्रन्थ (दिगम्बर) मनिगण इन गुफ़ाओं में तपस्या करते थे। स्वयं सम्राट खारवेल ने इस पर्वत पर रहकर धार्मिक यम-नियमों का पालन किया था। सत्यार्थ ज्ञान के उद्धार के लिए उन्होंने मथुरा, गिरनार और उज्जैन आदि जैन केन्द्रों के निग्रन्थाचार्यों को संघ सहित आमन्त्रित किया था। निर्ग्रन्च श्रमण संघ यहाँ एकत्रित हुआ और उपलब्ध द्वादशांगवाणी के उद्धार का प्रशंसनीय उद्योग किया था। इन कारणों से कुमारी पर्वत एक महापवित्र तीर्थ है। खण्डगिरि खण्डगिरि पर्वत 133 फीट ऊँचा सघन पर्वतमाला से शोभित है। खड़ी सीढ़ी का मार्ग ऊपर जाने के लिए हैं। सीढ़ियों के सामने ही खण्डगिरि गुफ़ा के नीचे-ऊपर पाँच गुफ़ाएँ अन्य भी बनी हुई हैं। अनन्त गुफा में 2 फोट 4 इंच की कार्योत्सर्ग जिनप्रतिमा शोभायमान है। पर्वत की शिखर पर एक छोटा और एक बड़ा दि. जैन मन्दिर हैं। छोटे मन्दिर में एक प्राचीन प्रतिमा अष्टप्रतिहार्यों से अलंकृत है। जैन पूजा-काव्यों में तीर्थक्षेत्र :: 287
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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