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________________ महावीर पूजन का सुफल श्री सन्मति जिन अघ्रिपद्म-युग जजै भव्य जो मन बच काय । ताके जन्म-जन्म संचित अघ, जावहिं इक छिन माँहि पलाय॥ धनगमदत पाई हन्द्रगट लई सो शर्म अतीन्दी थाय, अजर अमर अविनाशी शिवथल, 'वर्णी दौल' रहे शिरनाय॥ श्री गुणावा सिद्ध क्षेत्र पूजाकाव्य क्षेत्र का परिचय विहार प्रान्तीय गणावा क्षेत्र से, भगवान महावीर के प्रधान गणधरगौतप इन्द्रभूति ने आध्यात्मिक साधना करते हुए मुक्त पद को प्राप्त किया। गणधर का यह मन्दिर तालाब के मध्य में शोभित हो रहा है। मन्दिर में तीर्थंकरों के चरण चिह्न शोभायमान हैं। क्षेत्रीय पूजा-काव्य ___ गुणावा तीर्थपूजाकाव्य का निर्माण श्री बाबूपन्नालाल ने किया है। इसमें बाईस पद्म पाँच प्रकार के छन्दों में रचित हैं। उदाहरण के कुछ पद्यों का उद्धरण तीर्थ की स्थापना सोरठा छन्द धन्य गुणावा धाम, गौतम स्वामी शिव गये। पूजहु भव्य सुजान, अहनिश कर उर धापना। श्री पटना सिद्ध क्षेत्र पूजा-काव्य क्षेत्र का परिचय विहार प्रान्तीय पटना (वर्तमान) नगर, मौर्य राजाओं की प्राचीन राजधानी 'पाटलिपुत्र' के नाम से प्रसिद्ध है। यह जैन संस्कृति का सिद्ध क्षेत्र है। कारण कि श्री सुदर्शन स्वामी ने वीरधर्म पाव की साधना कर यहीं से मोक्षपद को प्राप्त किया था। सुरसुन्दरी के सदृश सुन्दर अभयारानी की काम वासनाओं के सन्मुख सेठ सुदर्शन अपनी ब्रह्मचर्य साधना में अटल रहे थे। अन्त में मुनिपद में रत्नत्रय की I. बृहत् महावीर कीर्तन. पृ. 725-725 जैन पूना-काव्यों में नोधमत्र :: 285
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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