SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 246
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ क्र, पूजन-काव्य मन्त्र क्रमांक संस्कार का नाम यज्ञ यज्ञ यज्ञ 6. सिद्ध पूजा 7. देवशास्त्र गुरु पूजन 8. शान्तिनाथ पूजा पार्श्वनाथ पूजा 10. महाबीर पूजा ।।. चन्द्रप्रम पूजा 12. ऋषभदेव पूना 13. देवशास्त्र गुरु पूजा 14. पंचपरमेष्ठी पूजा 15, चौबीसतीर्थकर पूजा Ith. सिद्धयन्त्र पूजा सप्तपदी पूजा मन्त्र क्र. मन्त्र क्र. मन्त्रक. मन्त्र . मन्त्र क्र. मन्त्र क्र. मन्त्र क्र. मन्त्र क्र. मन्त्र क. मन्त्र क. मन्त्र क्र. अनेक मन्त्र 6 जातकर्म संस्कार 7 नामकरण संस्कार यज्ञ ४ बहिनि संस्कार यज्ञ 9 निषद्या संस्कार 10 अन्न प्राशन संस्कार यज्ञ || प्युष्टि संस्कार यज्ञ 12 केशवाय (चौलकम) यज्ञ 13 लिपिसंख्यान (विद्यारम्भ) यज्ञ 14 उपनौति संस्कार 15 व्रताचरण संस्कार यज्ञ 6 विवाह संस्कार सप्तप्रदक्षिणा यज्ञ यज्ञ यज्ञ जैन पूजा-काव्य में नवग्रहशान्ति का विधान ज्योतिर्विद्या का मूलतः आविष्कार--ॐन दर्शन में ज्योसिबिया ता. अनिवार्यतः स्वीकार किया गया है। इसका मूलतः उदय या आविष्कार प्रथम तीर्थकर भगवान ऋषभदेव से हुआ है। उन्होंने अपने पुत्रों के लिए 72 कलाओं का आविष्कार कर उपदेश दिया और उनके पुत्रों ने मानव समाज के लिए उन सम्पूर्ण कलाओं का शिक्षण दिया। इस प्रकार कला शिक्षण की परम्परा ऋषभदेव से महावीर तीर्थंकर तक प्रचलित रही। भगवान महावीर के दिव्य उपदेश से कलाओं का शिक्षण हुआ। तत्पश्चात् गणधर तथा आचार्यों द्वारा कलाओं का शिक्षण प्रचलित रहा। उन कलाओं में एक ज्योतिर्विद्या का प्रसार भी होता रहा है। आचार्य उमास्वामी ने तत्त्वार्थसूत्रशास्त्र में ज्योतिष के विषय में प्रणयन किया हैं : "ज्योतिष्काः सूर्यचन्द्रमसौग्रहनक्षत्रप्रकीर्णकतारकाश्च" ॥ पेरुप्रदशिक्षा नित्वगतयो नृलोके ॥ तत्कृतः कालविभागः ॥' सारांश-इस मनुष्य लोक में सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र, तारागण, मेरुपर्वत की प्रदक्षिणा करते हुए नित्य गमन करते हैं और इन्हीं गतिशील सूर्य आदि ज्योतिप्क दवों के द्वारा पल, विपल, घटी. घण्टा, दिन, मात, वर्ष आदि काल का विभाग होता 1. श्री जिनसनाचार्यकृत आदिपुराण : सं. '. पन्नालाल साहित्याचार्य. प्र..भारतीय ज्ञानपीट दहली, पर्व 38, 1958. M. 241-228 | ५। :: जैन पूजा काब : एक चिन्तन
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy