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________________ आरम्भ करें उस दिन श्री जिनेन्द्र देव की पूजा आदि पहले के समान ही करना चाहिए। बालक स्वयं वस्त्र, अलंकार आदि से गुरु महोदय का सत्कार कर हाथ जोड़ पूर्व दिशा की ओर मुख कर बैठे और गुरु महोदय सन्तोषपूर्वक उसे पुस्तक दें। शिष्य प्रथम ही मंगलपाठ (मंगलाष्टक) पढ़े और फिर पुस्तक पढ़ना प्रारम्भ करे || उपनीति संस्कार इस संस्कार का नाम उपनीति उपनयन एवं यज्ञोपवीत है। यह संस्कार ब्राह्मणों को गर्भ से आठवें वर्ष में, क्षत्रियों को ग्यारहवें वर्ष में और वैश्यों को बारहवें वर्ष में करना चाहिए। यदि कारण कलापों से नियत समय तक उपनयनविधान न हो सका तो ब्राह्मणों को सोलह वर्ष तक, क्षत्रियों को बाइस वर्ष तक और वैश्यों को चौबीस वर्ष तक यज्ञोपवीत संस्कार कर लेना उचित है। यह उपनीति संस्कार का अन्तिम समय है। जिस पुरुष का यज्ञोपवीत संस्कार इस समय तक भी नहीं हुआ है, वह पुरुष असभ्य होकर धर्मविरुद्ध हो सकता है, इस संस्कार से रहित पुरुष पूजा-प्रतिष्ठा, जप, हवन आदि करने के योग्य नहीं होता है। पुत्र सात प्रकार के पाने गये हैं- (1) निज पुत्र, ( 2 ) अपनी लड़की का लड़का, (3) दत्तक ( गोद लिया) पुत्र, (4) मोल लिया पुत्र, ( 5 ) पालन-पोषण किया हुआ पुत्र, (6) अपनी बहिन का पुत्र, (7) शिष्य । यज्ञोपवीत करानेवाला आचार्य बालक का पिता हो सकता है, यदि पिता न हो तो पितामह (पिता के पिता). यदि वे भी न हों तो पिता के भाई (काका, चाचा, ताऊ आदि), यदि वे भी न हों तो अपने कुल का कोई भी ज्येष्ठ पुरुष, यदि वे भी न हों तो अपने गोत्र का कोई भी ज्येष्ठ पुरुष आचार्य बनकर यज्ञोपवीत करा सकता है। व्रताचरण संस्कार - यज्ञोपवीत के पश्चात् विद्याध्ययन करने का समय है, विद्याध्ययन करते समय कटिलिंग (कमर का चिह्न), ऊरुलिंग (जंघा का चिह्न) उरोलिंग (हृदयस्थल का चिह्न) और शिरोलिंग (शिर का चिह्न) धारण करना चाहिए। (1) कटिलिंग- इस विद्यार्थी का कटिलिंग त्रिगुणित मौजीबन्धन है जो कि रत्नत्रय का विशुद्ध अंग और ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य का चिह्न है । ( 2 ) ऊरुलिंग इस शिष्य का ऊरुलिंग धुली हुई सफ़ेद धोती तथा लँगोट है जो कि जैनधर्मी जनों के पवित्र और विशाल कुल को सूचित करती है । (3) उरोलिंग- इस विद्यार्थी के हृदय का चिह्न सात सूत्रों से बनाया हुआ यज्ञोपवीत है। यह यज्ञोपवीत सात परमस्थानों का सूचक है (4) शिरोलिंग - विद्यार्थी का शिरोलिंग शिर का मुण्डन कर शिखा (चोटी) सुरक्षित करना है। जो कि मन बचन काय की शुद्धता का सूचक है। 1 यज्ञोपवीत धारण करने के पश्चात् नमस्कार मन्त्र को नौ बार पढ़कर इस जैन पूजा काव्यों में संस्कार :: 243
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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