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________________ - --.. .- तक भी नामकरण न हो सके तो जन्मदिन से वर्ष पर्यन्त इच्छानुकूल नामकरण कर सकते हैं। पूर्व के संस्कारों के समान मण्डप, वेदी, कुण्ड आदि सामग्री तैयार करना चाहिए। पुत्र सहित दम्पती को वस्त्राभूषणों से सुसज्जित कर वेदी के सामने बैठाना चाहिए। पुत्र स्त्री के गोद में रहे। स्त्री पति की दाहिनी ओर बैठे। मंगलकलश भी कुण्डों के पूर्व दिशा में दम्पती के सन्मुख रखे। -. - - .- - ----- बहिन संस्कार आठवें संस्कार का नाम बहिन है। बहिर्वान का अर्थ बाहर निकालना है। यह संस्कार दूसरे, तीसरे अथवा चतुर्थ महीने में करना चाहिए। घर से बाहर निकलने का अभिप्राय बालक को जिनेन्द्र देव का प्रथम दर्शन कराना है। अर्थात जन्म से दुसरे, तीसरे अघवा चौथे महीने में बच्चे को घर से बाहर निकालकर प्रथम ही किसी चैत्यालय अधवा मन्दिर में ले जाकर श्री जिनन्द्रदय के दशन श्रीफल के साथ स्तुति पढ़ते हुए कराना चाहिए। इसी समय केशर से बच्चे के ललाट में तिलक करना भी आवश्यक है। यह क्रिया शुक्लपक्ष एवं शुभ नक्षत्र में की जाती है। ----- - निषद्या संस्कार जन्म से पाँचवें मास में निषद्या वा उपवेशन विधि करना चाहिए। निषद्या या उपवेशन का अर्थ हैं बिठाना अर्थात पाँचवें मास में बालक को बिगाना चाहिए। प्रथम ही भूमि-शुद्धि, पूजन और हवन कर पंच कुमार तीर्थंकरों का पूजन करें। वासुपूज्य, मल्लिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ, महावीर इन पाँच बालब्रह्मचारी तोर्थंकरों को कुमार कहते हैं। अनन्तर चावल, गेहूँ, उड़द, मूंग, तिल, जवा इनसे रंगावली चौक बनाकर उस पर एक वस्त्र बिछा दं। बालक को स्नान कराकर वस्त्रालंकारों से विभूषित करें। पश्चात् “ओं ह्रीं अर्ह अ सि आ उ सा नमः बालक उपवेशवामि स्वाहा" | यह पत्र पढ़कर उस रंगावली पर बिछे वस्त्र पर उस बालक को पूर्व दिशा की ओर मुखकर पद्मासन बिठाना चाहिए। अनन्तर बालक की आरती उतारकर प्रतिष्ठाचार्य एवं प्रमुख जन उसको आशीर्वाद प्रदान करें। अन्नप्राशन संस्कार इस संस्कार का नाम अन्नप्राशन विधि है। अन्नप्राशन का अर्थ है कि बालक को अन्न खिलाना। सारांश यह कि बालक को अन्न खाना सिखलाने के लिए तथा उस अन्न द्वारा बालक को पुष्टि होने के लिए सह संस्कार किया जाता है। यह संरक.: सातवें मास में करना चाहिए। यदि सातवें में न हो सके तो आठवें अथवा नौवें मास में करना उचित है। 24# :: जैन पूजा काव्य : एक, चिन्तन
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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