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________________ ዚ " i प्रभावित करता है। इसी जयमाला का पद्य सं. 6 इस प्रकार चमकता है। गलध्यानमालं स्फुरच्चिद्विशालं, दितारातिजालं विनष्टान्तकालम् । मुनिध्येयरूपं त्रिलोकैकमूपं यजे आदिनाथं सुखागाधकूपम् इस काव्य में अनुप्रास, परिकर, रूपक, स्वभावोक्ति इन अलंकारों का चमत्कार होने से, शान्तरस द्वारा आत्मा में परमानन्द का अनुभव होता है। जयमाला का अन्तिम दशम पथ यजध्वं भजध्वं बुधाः सम्मनुध्वं, निधध्वं हृदिध्वं विशुद्धादिनाथम् । चिदानन्दकन्दं स्वरूपोपलब्धि, यदीह ध्वमन्तं निनीषध्वमेनम् ॥ इस काव्य में स्वभावोक्ति एवं परिकर तथा अनुप्रास अलंकारों के अलंकरण से शान्तरस का परमानन्द प्राप्त होता है। क्रिया समूह की ध्वनि चित्त में चेतना जागृत करती है। आशीर्वाद में अन्त्रि का 108 बार जाप करना चाहिए। मन्त्र - ओं ह्रीं श्रीं अर्ह श्रीवृषभनाथ तीर्थंकराय नमः ॥ इस पूजा में प्रारम्भिक स्तुति, द्रव्य अर्पण और जयमाला के सभी पद्य अर्थालंकारों तथा शब्दालंकारों से परिपूर्ण है, कठिन है और पढ़ने में ही आनन्द प्रदान करते हैं 1 श्री तत्त्वार्थसूत्र (मोक्षशास्त्र ) पूजा ईस्वी संवत् के प्रारम्भ में दक्षिण भारत के महान तपस्वी आचार्य उमास्वामी ने मानव समाज को तत्त्वोपदेश देने के लिए संस्कृतवाणी में तत्त्वार्धसूत्र को रचना को इस ग्रन्थ का दूसरा नाम मोक्षशास्त्र भी प्रसिद्ध है। इसमें दश अध्याय हैं तथा 957 सूत्र हैं। इसमें सात तच्चों का व्याख्यान किया गया है: जीव, अजीब, आम्रव बन्ध, संवर, निर्जरा, मोक्ष। इस शास्त्र की गम्भीरता एवं सैद्धान्तिक विषय का अनुशीलन कर उत्तरवर्ती सोलह आचार्यों ने इसकी विशेष व्याख्या की है। इसकी गम्भीरता एवं महत्ता का अन्वीक्षण कर एक अज्ञात नाम आचार्य ने इलको पूजा का निर्माण संस्कृत में ही किया है। पूजन इस प्रकार हैं। मंगलाचरण : मोक्षमार्गस्य नेतारं भेतारं कर्मभूभृताम् । ज्ञातारं विश्वतत्त्वानां वन्दे तद्गुणलब्धये ॥ ओ हो मोक्षशास्त्रं तत्त्वार्थसूत्रे दशाध्यायेभ्यः पुष्पांजलिं क्षिपेत् । 1. श्री दि. जैनपूजनसंग्रह मं. राजकुमारशास्त्री, इन्टार, पृ. 77-86 1 : 182 जैन पूजा काव्य एक निन्तन (दुतविलम्बित छन्द)
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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