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________________ से मनोहर, देवेन्द्र नागेन्द्र एवं चक्रवर्ती के द्वारा बन्दनीय श्री बाहुबलिकामदेव का मैं भक्तिपूर्वक पूजन करता हूँ। इस पद्य में श्री बाहुबलि के यथार्थगुणों के वर्णन से भक्तिरस का प्रवाह दर्शाया गया है। स्वभावोक्ति एवं अनुप्रास अलंकार शोभित है। स्थापना के मन्त्र ओं ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अड़ बाहुबलिजिनदेव अत्र अवतर अवतर संरौषट् । अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः इति स्थापनं । अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् इति सन्निधापनं । पीले चावल (पुष्प) से स्थापना करने के पश्चात् जल आदि द्रव्यों का अर्पण करते हुए आठ पद्य क्रमशः कहे जाते हैं, उनमें जल का पद्य यह है : दिव्यदीर्घिकादिनव्यतीर्थपावनोदकैः सेव्य मानभव्यवृन्द पापतापनाशकैः । वन्ध्यशैलमस्तके सुरासुरौधपूजितं, सुन्दसंगमर्चयामि गोमटेशमच्युतम् ॥ अक्षत ( तण्डुल ) अर्पण करने का पद्य : रूप्यशुभ्र साग्र दीर्घदभ्र शालितण्डुलै : प्रेक्षमाणभक्तलोकस्वार्थदृङ्मनोहरैः । सोतोका जी यक्षवन्यमर्चयामि दोर्बलीशमिष्टदम् ॥ अर्ध्य का पद्य बारिगन्धचारुशालितण्डुलप्रसूननेवेद्यदीपधूपत्तत्फलौघनिर्मितार्घ्यकैः । देवराज भोगिराजभूमिराजपूजितम् देवदेवमर्चयामि विश्वजीवदायिनम् ॥ इस पद्य में आठ द्रव्यों तथा बाहुबलि का वर्णन किया गया है । स्वभावोक्ति एवं अनुप्रास अलंकारों से शान्तरस प्रवाहित होता है । इस पूजा की जयमाला का अन्तिम पद्य : दरदलितसरी जाशोकबन्धुकसू नै: सुरभिनिकरसवादसन्तानदानैः । पुरुजनपतिसूनोः पाण्डितार्याब्जभानोः वरपदकमले पुष्पांजलिं प्रार्थयामि ॥ भगवान् ऋषभदेव का पूजन श्री मुनि सोमसेन गणी ने पच्चीस संस्कृत पद्यों में इस पूजन की रचना की हैं, प्रथम पद्म अनुष्टुप् छन्द में 2-3 पद्य उपजाति छन्द में, सं. 4 से सं. 12 तक संस्कृत और प्राकृत जैन पूजा काव्यों में छन्द... 173
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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