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________________ चैत्य (प्रतिमा) समूह की स्मृतिपूर्वक वन्दना की गयी है, प्रतिमा या मूर्ति नवदेवों में एक देव माना गया है, इस भक्ति के दोहाचतुष्टय द्वारा आत्मशान्ति का मार्ग दर्शाया गया है, उदाहरणार्थ दोहा प्रस्तुत चैत्यभक्ति को मैं करूँ, सदा आत्म में देव। तीन लोक में चैत्य जो, उनको नमें सुदेव।। दिव्यगन्ध पुष्पादि से, पूजें वे जिनविम्ब। अर्चन बन्दन आदि में, तत्पर हैं अबिलम्ब॥ नन्दीश्वर भक्ति-इस भक्ति में एक ही दोहा द्वारा आठवें नन्दीश्वरद्वीप के अकृत्रिम चैत्य (प्रतिमा) तथा चैत्यालयों (मन्दिरों) की वन्दना की गयी है जिससे आत्मशद्धि की प्रगति होती है, इसमें स्वाध्याय से विश्वतत्त्वों के ज्ञान की प्राप्ति की कामना निहित है बावन चैत्यालय न. नन्दीश्वर को ध्याय । विश्वप्रकाशक ज्ञान हो, रहे नित्य स्वाध्याय।। शान्ति भक्ति-इस भक्ति पाठ में कहा गया है कि चौंतीस अतिशयों (चमत्कारों) से शोभित जीवन्मुक्त अर्थात् अर्हन्त भगवान् आत्मा में और लोक में शान्ति स्थापित करें, कारण कि वे कर्मशत्रुओं को जीतनेवाले जिन कहे जाते हैं और स्वयं शान्ति है.. निज पर में शान्ति करें, चौतिस अतिशय युक्त। वे जिनवर शान्ति करें, जो हैं जीवन्मुक्त॥ इस भक्ति में एक ही छन्द (दोहा) शान्तिप्रदायक है। समाधि भक्ति-समीचीन श्रद्धा और ज्ञान के साथ सम्यक् आचरण की साधना करना समाधि कहा जाता है, इस भक्ति में समाधि को मनसा-वाचा-कर्मणा नमस्कार किया गया है, समाधि को ध्यान भी कहते हैं। इससे आत्पशान्ति एक ही छन्द द्वारा व्यक्त की गयी है सम्यक दर्शन ज्ञान जो, सम्यक जो चारित्र । सदा समाधि रूप है, न, सदा सुपवित्र।। चौबीस तीर्थंकर भक्ति-इस सामूहिक भक्ति पाठ में श्री ऋषभदेव से लेकर श्री महावीर तक चौबील तीर्थंकर देवों की भक्ति तथा उसकी महत्ता दर्शायी गयी है। इसमें छह छन्दों द्वारा विश्वशान्ति का मार्ग प्रकट किया गया है । श्रीस्तोत्रपार संग्रह, पृ. . अन पूजा-काश्य के विविध रूप :: 14.5
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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