SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 140
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दर्शनाचार आदि पंच आचार, समताभाव आदि छह आवश्यक कर्तव्य और मनोगप्ति आदि तीन गुप्ति-इन छत्तीस मुख्य गुणों का प्रतिपालन आचार्य महात्मा महती दृढ़ता के साथ करते हैं, दश दोहा छन्दों में इनके यशोगान से समता की सरिता बायी गयी है। उदाहरणार्थ निर्वाणभक्ति-इस भक्ति में प्रथम तीर्थकर श्रीऋषभदेव से लेकर चौबीसवें तीर्थंकर श्री महावीर तक चौबीस तीर्थंकरों के निर्वाणक्षेत्रों (मुक्तिप्राप्त करने के तीर्थ) की वन्दना की गयी है। इनके अतिरिक्त जो भी आचार्य, उपाध्याय, ऋषि जिस तीर्थ से मुक्ति पद को प्राप्त हुए हैं, उन समस्त तीर्थों के नामोच्चारणपूर्वक वन्दना की गयी है। भारतवर्ष में सहस्रों सहसों सोने ऋषि तहमा पुगत को इस युः हैं। उन सबका वर्णन इस भक्ति में किया गया है। यह पाठ अट्ठाईस दोहा छन्दों के माध्यम से शान्तरस की वर्षा करके आत्मा में शान्ति का उद्भव करता है। उदाहरण के लिए कुछ सरस छन्दों का प्रदर्शन इस प्रकार है अष्टापद में वृषभ का, हुआ नमें निस्तार । वासुपूज्य चम्पा न, नेमि नमूं गिरनार॥ पावा में महावीर का, क्लेश रहित निर्वाण । शेष बीस सुरवध बे, गिरि सम्मेट सुजान। जो जन पढ़े त्रिकाल में, निवृतिकापड सुभक्ति । भोगे नर सुर तौख्य अरु, मुक्त बने वह व्यक्ति।।' पंचगुरुभक्ति-इस भक्ति में अरहन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु-इन पंच परमेष्टी महात्माओं को, अपने-अपने गुणों से पूज्य मानकर प्रणाम किया गया है। ये सभी मुक्ति के मार्ग की उपासना करते हैं, इसमें सात दोहा छन्दों के द्वारा शान्तरस पिलाया गया है, उदाहरणार्थ दोहा मनज नागसुर इन्द्र से, घरे छत्रत्रय आय। पांचों कल्याणों सहित, न, चतुगंण राय॥ ध्यान अग्नि जर मरण को, तथा जन्म कर नाश। प्राप्त किया है सिद्ध पद, लोक अन्त में बास।। अर्हन्त सिद्ध आचार्य हैं, उपाध्याय अरु साधु । बार-बार इनको न, भव भव में आराध्रु॥ चैत्य मक्ति -इस भक्ति में तीन लोक में विद्यमान चैत्यालयों (मन्दिरों) के I. श्रीस्तोत्रपाट संग्रह : नि.भ , पृ. 31, 33, 34 2. श्रीस्तोत्रपाठ संग्रह : पचगुरुभक्ति. पृ. 35 144 :: जैन पूजा-काव्य : एक चिन्तन
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy