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________________ i उसी प्रकार मंगलकाव्य भी बहुत संख्या में प्राप्त होते हैं जिनमें अनेक प्रकार के छन्द रीति और अलंकार के प्रयोग किये गये हैं। उदाहरणस्वरूप संस्कृत में कुछ प्रमुख मंगलकाव्यों का दिग्दर्शन है मंगलं भगवान् वीरो, मंगलं गौतमो गणी । मंगलं कुन्दकुन्दायो, जैनधर्मोऽस्तु मंगलम् ।। अर्थ- चौबीसवें तीर्थंकर भगवान् महावीर मंगलस्वरूप हैं तथा मंगलकारी हैं, भगवान महावीर के प्रधानगणधर इन्द्रभूति गौतम मंगलमय तथा मंगल करनेवाले हैं, कुन्दकुन्द आदि अनेक आचार्य, उपाध्याय एवं साधु मंगलमय और मंगलविधायक हैं, जैनधर्म मंगलमय है और विश्व का मंगल (कल्याण) करनेवाला है। यह अनुष्टुप् छन्द है, प्रसादगुण है । लघुसुप्रभातस्तोत्र में श्रेष्ठमंगल सुप्रभात सुनक्षत्रं, सुकल्याणं सुमंगलम् | त्रैलोक्यहितकर्तॄणां जिनानामेव शासनम् ॥ सारांश-तीन लोक के प्राणियों का हित करनेवाले तीर्थंकरों का शासन (दिव्य उपदेश) निश्चय से उत्तम प्रभातकाल, उत्तम नक्षत्र, उत्तम कल्याण हैं और उत्तम मंगलमय एवं मंगलकारी है। यह श्लोक छन्द है, रूपकमाला अलंकार से शोभित है। लघु सामायिक पाठ में मंगल का महत्त्व - सुरेन्द्रमुकुटाश्लिष्टपादपदमांशुकेसरम् । प्रणमामि महावीरं लोकत्रितयमंगलम् ॥ तात्पर्य- देवेन्द्रों के मुकुटों से मिले हुए चरणकमलों की किरणें रूपकेसर से शोभित, तीन लोक के प्राणियों के लिए मंगल करनेवाले श्री महावीर तीर्थंकर को मैं प्रणाम करता हूँ | इस श्लोक छन्द में रूपकालंकार तथा स्वभावोक्ति अलंकार है । भूपालकविरचित जिनचतुर्विंशतिकास्तोत्र में मंगलवस्तु के दर्शन का महत्त्व - सुप्तोत्थितेन सुमुखेन सुमंगलाय, द्रष्टव्यमस्ति यदि मंगलमेव वस्तु । अन्येन किं तदिह नाथ तवैव वक्त्रं, त्रैलोक्य मंगलनिकेतनमीक्षणीयम् ॥ तात्पर्य - शयन करके उड़ने के बाद नियम से किसी मंगलवस्तु को देखना चाहिए, यदि ऐसा नियम है, तो हे स्वामिन्! अन्य वस्तु से क्या प्रयोजन, तीन लोक के प्राणियों के मंगलकेन्द्र स्वरूप आपका मुख ही देखना चाहिए । इस पद्य में वसन्ततिलका छन्द तथा तद्गुण अलंकार शोभित है। श्री पार्श्वनाथ स्तोत्र में स्तोत्र पाठ का शुभ फल दर्शाकर मंगलरूप सिद्धि को मुख्य कहा गया है 1. पंचस्तोत्र संग्रह : दि. जैन पुस्तकालय गाँधी चौक, सूरत, प्र. सं., पृ. 136 जैन पूजा काव्य के विविध रूप : 123
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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