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________________ कवि बनारसीदास कवि भूधरदास कवि देवीदास मुक्ति श्री मुक्ति श्री 43. साधुवन्दना 44. गुरुस्तुति 45. गुर्वावलीस्तोत्र 46, पुकारपच्चीसी 47. गुरुवाणी 48. सर्वज्ञवाणी 49. देव अर्चना 50. ज्ञानपच्चीसी 51. धर्मपच्चीसी 52. सिद्धभक्ति 53. श्रुतभक्ति 54. संकटहरणस्तुति 55. महावीर चालीसा 56. पद्मप्रम मादः 57, चन्द्रप्रभ चालीसा 58, शारदाष्टक कवि बनारसीदास कवि धानतराय क्षुल्लक सिद्धसागर क्षु. सिद्धसागर कवि रामचन्द्र कवि सुरेशचन्द्र कविवर बनारसीदास मंगलकाव्य पूजा-काव्य के अन्तर्गत मंगलकाव्य भी माना गया है कारण कि जिस प्रकार पूजा में परमात्मा या महात्मा के गुणों का स्तबन या स्तुति की जाती है, उसी प्रकार मंगल के आचरण में भी परमात्मा के गुणों की स्तुति की जाती है। अन्तर केवल इतना है कि पूजा मैं शुद्धभावपूर्वक द्रव्यों का अर्पण किया जाता है और मंगल आचरणों में परमात्मा के गुणों का स्मरण करते हुए मन, वचन और काय से नमस्कार किया जाता हैं। यह मंगल किसी ग्रन्थरचना के आदि में, मध्य में अथवा अन्त में किया जाता है अथवा किसी शुभ कार्य के आदि में, मध्य में या अन्त में किया जाता है। इसलिए मंगल आचरण की महती आवश्यकता लोक में प्रतीत होती है। इसी विषय को श्री पुष्पदन्त एवं श्री भूतवाल आचार्य ने षखण्डगपग्रन्थ में स्पष्ट कहा है मंगल णिमित्त हेऊ, परिमाणं णाम तय कत्तारं। बागरिय छप्पि पच्छा, वक्खागा सस्थमाइरियो।' 1. परवानगम प्र.. सत्प्रलपणा, सं-डा. हीरालाल जैन, संशोधित संस्करण, पृ. ४, जैन संस्कृति संरक्षक संघ सालापुर. 1973 TH :: जैन पूजा-काव्य : एक चिन्तन
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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