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________________ तुम पदपंकज में अलि बन सुरपतिगण करता गुनगुन है गोमटेश प्रभु के प्रति प्रतिपल वन्दन अर्पित तनमन है | दिगंबरी जोण च भोइजुत्तो, पण चांबरे सत्तमणो विसुद्धो । सप्पादि जंतुप्फुसदो ण कंपो, तं गोमदेसं प्रणमामि णिच्च ॥ अम्बर तज अम्बर तल थित हो, दिगअम्बर नहिं भीत रहे अम्बर आदिक विषयन से अति विरत रहे, भवभीत रहे । सर्पादिक से घिरे हुए पर अकम्प निश्चल शैल रहे गोमटेश स्वीकार नमन हो धुलता मन का मैल रहे ।। आसा ण ये पोक्खा दि सच्छदिठि, सोक्खेण वंछा हयदोसमूलं । विरायभावं भरहे विसल्लं तं गोमटेस पणमामि णिच्च ॥ आशा तुमको छू नहिं सकती, समदर्शन के शासक हो, जग के विषयन में वांछा नहिं दोषमूल के नाशक हो । भरतात में शल्य नहीं, अब विगतराग हो रोष जला, गोमटेश तुममें मम इस विधि सलत राग हो, होत चला उपाहिमुत्तं धणधाम वज्जियं सुमम्मजुत्तं मदमोहहारयं । वस्सेय पज्जन्तमुवदास जुत्तं तं गोमटेसं पणमामि णिच्च॥ काम धाम से धनकंचन से, सकलसंग से दूर हुए, शूर हुए मदमोह मारकर, समता से भरपूर हुए। एक वर्ष तक एक थान थित, निराहर उपवास किये, इसीलिए बस गोमटेश जिन, मनमन में अब बास किये ॥ ' इसी प्राकृत तथा हिन्दी स्तोत्र में श्रीबाहुबलिस्वामी के शरीर-सौन्दर्य, शक्ति, वैराग्य और तपस्या का वर्णन रम्यशब्दों में किया गया है। इसमें उपमा, रूपक, स्वभावोक्ति, परिकर, अनुप्रास अलंकारों की छटा से शान्तरस एवं वीररस का पोषण हुआ है। प्राकृत के कतिपय भक्तिस्तोत्र एवं गीतिकाव्य 1. धम्मरसायण 2. ऋषभपंचासिका 3. उवसग्गहरस्तोत्र 4 अजिय संतिथय आचार्य पद्मनन्दि श्री पं. धनपाल स्वामी भद्रबाहु नन्दिषेण 1. स्याद्वादज्ञानगंगा : सं. गुलाबचन्द्रदर्शनाचार्य प्र. सुमतिचन्द्र शास्त्री मुरैना, सन् 1981, पृ. 2-3 जैन पूजा - काव्य के विविध रूप : 115
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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