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________________ विवादिसाशेषविधिविधिर्विधिर बभूव सविहरी हरी हरी। त्रिज्ञानसंज्ञानमयो मयो मयी पार्श्व फणे रामगिरौ गिरौ गिरौ।। संरक्षतो दिग्भवन वन वनं विराजितायेषु दिदै दिदै दिवै। पादद्वये मूतसुराऽसुराऽऽसुरा पार्श्व फणे रामगिरौं गिरी गिरौ॥ रराज नित्यं सकलाकलाऽकला पमास्कृष्णोऽवृजिनो जिनो जिनो। सहारपूज्यं वृषभासभासमा पार्श्व फणे रामगिरौ गिरौ गिरौ।। (शार्दूलविक्रीडितमवृत्तम्) तर्के व्याकरणे च नाटकचये काव्याकुले कौशले, विख्यातो भुवि पद्मनन्दिमुनिपस्तत्त्वस्य कोश निधिः । गम्भीरं यमकाष्टकं भणति यः शम्भूयसा लभ्यते, श्रीपद्मप्रभदेव निर्मितमिदं स्तोत्रं जगन्मंगलम्। इस स्तोत्र श्री पार्श्वनाथ यमकाष्टक का सृजन श्री पद्मप्रभदेव ने विद्वत्ता के साथ किया है। इसकी संस्कृत टीका श्री मुनिशेखर ने सम्पादित की है। इसका नित्य पाठ करने से जगत् का कल्याण होता है। इसमें 23वें तीर्थंकर भगयान् पार्श्वनाथ का वर्णन एवं नमस्कार किया गया है। जिनमें अलंकारों की सजावट है, गुणों से निर्मलता है, विधि छन्दों में भक्तिरस का प्रवाह है। उनके उदाहरण देने में लेख का विस्तार होता है इसलिए उनकी सूचिका यहाँ लिखी जाती है। रचयिता क्रम संस्कृतस्तोत्रनाम 1. लघुतत्त्वस्फोट 2. लिनसहस्रनामस्तोत्र 3. बृहत्स्वयंभूस्तोत्र 4. लयुस्वयंभूस्तोत्र अमृतचन्द्र आचार्य श्री जिनसेन आचार्य श्री समन्तभद्र आचार्य 1. श्री जनस्तोत्रसंग्रह-द्वि. भाग : सं. श्रीयशोविजयमुनि, प्र.-चन्द्रप्रभायंत्रालय काशी, वी. सं. 2432, पृ. -69, श्री पाश्यनायजिमाष्टकम् 110 :: जैन पूजाकाव्य : एक चिन्नन
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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