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________________ ( अनुष्टुप् छन्द) भट्टारककृतं स्तोत्रं यः पठेद्यमकाष्टकम् | सर्वदा स भवेद् भब्यो, भारतीमुखदर्पणः ॥' भावार्थ- मट्टारक अमरकीर्ति के द्वारा विरचित यमकाष्टकमय इस महावीरस्तोत्र का जो भव्य मानव निरन्तर पाठ करता है, वह सरस्वती के मुख का दर्पण होता है अर्थात् उसको समस्त विद्या अनायास सिद्ध हो जाती है। श्रीपार्श्वनाथ जिनाष्टक अथवा महालक्ष्मी स्तोत्र ( इन्द्रवंशा छन्द) लक्ष्मीर्महस्तुत्यसती सती सती प्रवृद्धकालो विरतोऽरतो रतो । जयरुजापन्महताऽहता हता पार्श्व फणे रामगिरौ गिरौ गिरौ ।। अर्चेयमाद्यं भुवि नाविना विना यत्सर्व देशे सुमना मना मना । समस्त विज्ञानमयो भयो भयो पार्श्व फणे रामगिरौ गिरौ गिरौ ।। अज्ञान सत्कामलता लता लता यदीयसद्भावनतानता नता । निर्वाणसौख्यं सुगता गता गता पार्श्व फणे रामगिरी गिरी गिरौ । व्यनेष्ट जन्तोः शरणं रणं रणं क्षमादितो यः कमठं पठं मठं । नरामराऽऽरामक्रमं क्रमं क्रमं पार्श्व फणे रामगिरौ गिरौ गिरौ ।। यविश्यलीकैकगुरुं गुरु गुरु विराजिताये न वरं वरं वरं । तमालनीलांगभरं भरं भरं पार्श्व फणे रामगिरौ गिरौ गिरौ । 1. आचार्य शिवसागरस्मृतिग्रन्य: सं.पं. पन्नालाल साहित्याचावं, प्र. कमल प्रिण्टर्स मदनगंज किशनगढ़ ( राजस्थान). वी. नि. सं. 2500, पृ. 588-509 अपरकीर्तिकृतः महावीरयमकाष्टकस्तोत्रम् । जैन पूजा काव्य के विविध रूप : 109
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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