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________________ व्यवहारमोक्षमार्ग, उनमें प्रयोजनभूत जो जीव-अजीव दो तत्त्व, उनको विषय करनेवाली (जाननेवाली), मिथ्यादर्शन-ज्ञान-चारित्र को हरण करनेवाली, श्रेष्ठ वचन विन्यासरूप आभूषण एवं वस्त्रों से सुसज्जित, अन्तरंग-बहिरंग रूप लक्ष्मी को सिद्ध करनेवालो, सद्बुद्धि से सम्पन्न करनेवाली, अक्षयसुख को प्रदान करनेवाली और नागराज के द्वारा पूजित, विश्व कल्याणकारिणी समन्तभद्रवाणी की मैं नागराज स्तुति करता हूँ। श्रीमहावीरयमकाष्टकस्तोत्र (इन्द्रवंशाछन्द) विद्यास्पदार्हन्त्यपदपदंपदं, प्रत्यग्रसत्पद्मपरं परंपरम् । हेयेतराकार-बुध बुध बुध, वीरस्तुवे विश्वहितं हितंहितम्॥ भाव सौन्दर्य-मैं निश्चय से उन महावीर भगवान् की स्तुति करता हूँ जो कि समस्त विद्याओं के आधारभूत अन्तिपद के स्थान हैं, जिनके पद-पद पर नवीन एवं मनोहर कमलों की श्रेष्ठ परम्परा विद्यमान थी, जो हेय तथा उपादेय स्वरूप पदार्थ को दर्शानेवाले थे, जो केवलज्ञानी थे, जो सौम्य, विश्व के हितकारी और परमपद को प्राप्त हुए थे। दिव्यं वचोयस्य सभा सभासभा, निपीय पीयूषमितं मितं मितम् । वभूवतुष्टा ससुरासुरा सुरा, वीरं स्तुवे विश्वहितं हितं हितम्॥ मैं उन विश्वहितकारी, ज्ञानवृद्ध अथवा पदमपद को प्राप्त महावीर स्वामी की निश्चय से स्तुति करता हूँ जिनके कि अमृततुल्य, परिमित एवं प्रमाणसंयत दिव्यवचन को सुनकर, सभा-आदर से सहित, सभा-कान्ति से सहित, सुर और असुरों से सहित तथा अत्यन्त शोभायमान देव तथा प्राणियों के रक्षक, सभा-समवसरणभूमि भोगाकांक्षा से रहित सन्तुष्ट हो गयी थी। शत्रुप्रमाणैरजिताजिताजिता, गुणावलीयेन धृता धृता धृता । संवादिन तीर्थकरं करं करं, वीरं स्तुविश्वहितंहितं हितम्॥ मैं अमरकीर्ति उन विश्वहितकारी, परमपद को प्राप्त महावीर भगवान् की निश्चयतः स्तुति करता हूँ जो समीचीन वक्ता हैं, तीर्थंकर हैं, कर-अनन्तसुखप्रद हैं, कर-उदितसूर्यसदृश तेजस्वी हैं, साथ ही जिन्होंने उस गुणावली को धारण किया था जो प्रतिवादियों के प्रमाणों से अपराजित थी, ताजिता-तपरूपलक्ष्मी के द्वारा प्राप्त थी, अथवा संग्रामता से जिता-सिद्ध थी तथा धृताधृता-कामादिपिशाच से गृहीत (बद्ध) मनुष्य जिस गुणावली को धारण नहीं कर सकते थे। मयूखमालीवमहामहामहा, लोकोपकारं सविता विता विता। विभातियोगन्धकुटीकुटीकुटी, वरंस्तुवे विश्वहितं हितं हितम्॥ :: जैन पूजा-काव्य : एक चिन्तन
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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