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________________ इन्द्रभतिभाषितप्रमेयजालगोचराम वर्धमानदेययोधयुद्धचिद्विलासिनीम् । योगसौगतादिगर्वपर्वताशनि स्तुवे क्षीरवार्धिसन्निभां समन्तभद्रभारतीम्।। इन्द्रभूति (गौतम) गणधर के द्वारा भाषित पदार्थों के समूह का विषय करनेवाली, भगवान महावीर द्वारा प्रतिपादित ज्ञान से सम्पन्न चैतन्य गुण का भोग करनेवाली नैयायिक, वैशेषिक, बुद्ध आदि प्रतिवादियों के गर्वरूप पर्वत को खण्डित करने के लिए यन्त्र के समान, क्षीरसागर के समान निर्मलयश से विभूषित श्री समन्तभद्र भारती का मैं कवि नागराज स्तबन करता हूँ। माननीतिवाक्यसिद्ध वस्तुधर्मगोचराम् मानितप्रभावसिद्धसिद्धिसिद्धसाधनीम्। मोरभूरिदुःखबाधितारणक्षमामिमाम् चारुचेतसा स्तुवे समन्तभद्रभारतीम्।। प्रमाण तथा नीति के बाक्यों से सिद्ध वस्तुधर्म को जाननेवाली, प्रमाणित प्रभाव (प्रतिभा) से सिद्ध जो आत्मसिद्धि, उसको सिद्ध करने का साधनरूप, घोर तथा अपार दुःख रूपी सागर को पार करने में समर्थ (सक्षम), इस प्रकार की समन्तभद्रवाणी का मैं नागराज शुद्ध मानस से स्तवन करता हूँ। सान्तसाधनाद्यनन्तमध्ययुक्तमध्यमा शून्यभावसर्ववैदितत्त्वसिद्धिसाधनीम् । हेत्वहेतुबादसिद्धवाक्यजालभासुराम् पोक्षसिद्धयेस्तुवे समन्तभद्रमारतीम्।। नयों की अपेक्षा सान्त, आदि, अनादि, अनन्त और मध्य काल से युक्त मध्यमरूपकाली, रागद्वेष मोह से शून्य भाव अर्थात वीतरागभाव से परिपूर्ण सर्वज्ञ अर्हन्त द्वारा कथित आत्मतत्त्व की सिद्धि को सिद्ध करनेवाली अर्थात् मुक्ति का साधन स्वरूप, कार्य कारणभाव की अपेक्षा से सिद्ध जो स्याद्वादमय वाक्य समुदाय, उससे कान्तिमती-इस प्रकार की समन्तभद्र की सरस्वती को मैं नागराज मोक्ष की सिद्धि के लिए संस्तुत करता हूँ। व्यापकद्वयात्ममार्गतत्त्वयुग्मगोचराम् पापहारि-वाग्विलासिभूषणांशुका स्तुचे । श्रीकरी च धीकरी च सर्वसौख्यदायिनीम् 'नागराज' पूजितां समन्तभद्रभारतीम्।। विश्वव्यापक एवं आप्त-अर्हन्तदेव कथित जो निश्चय मोक्षमार्ग और जैन पूजा-काव्य के विविध रूप :: 105
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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