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________________ और योगी कहते हैं। परमेष्ठी देयों के गुणों का अथवा आत्मा के शुद्धस्वरूप का स्मरण करना ही सच्ची देवपूजा है। इस सम्प्रदाय में मूर्ति तथा द्रव्यों के माध्यम से पूजा नहीं की जाती, किन्तु वेदी में शास्त्र को स्थापित कर आरती द्रव्य से पूजा करते हैं, नृत्य करते हैं, जयकार की ध्वनि करते हैं, प्रणाम करते हैं। कतिपय वर्ष पूर्व कहानजी सम्प्रदाय की स्थापना हुई थी। निश्चय नय प्रधान इस पन्थ में आत्मा एवं परमात्मा के गुणों का स्मरण करमा पूजा कहा गया है। मूर्ति एवं द्रव्यों के माध्यम से भी पूजा की जाती है। इसमें आरती, नृत्य आदि क्रियाओं को स्थान नहीं है। ज्ञान की आराधना मुख्यतया होती है। शुद्ध आत्मा की उपासना के लिए देव, शास्त्र, गुरु की पूजा को मान्य किया जाता है। इस मान्यता में पुण्यकार्य को हेय तथा शुद्धात्मा को उपादेय एकान्त रूप से ग्राह्य है। इस प्रकार भारतीय प्राचीन दर्शन, धर्म, संस्कृति और आधुनिक सम्प्रदाय, ईश्वर सम्बन्धी तथा सिद्धान्त विषयक उपासना या भक्ति का समर्थन, श्रद्धा और मान्यता करते हैं। इस कारण से हमारे मन में यह प्रेरणात्मक विचार उत्पन्न हुआ कि 'जैन पूजा काव्य' इस विषय पर शोध प्रबन्ध लिखना चाहिए। तदनुसार 'जैन पूजा-काव्य' पर शोध प्रबन्ध का प्रणयन किया। प्रस्तुत शोधप्रबन्ध की आवश्यकता इस विषय पर अभी तक किसी भी विद्वान ने शोध कार्य नहीं किया है और न लेखमाला का सृजन किया है। इसलिए हमने निर्देशक महोदय के परामर्श से 'जैन पूजा-काव्य' पर शोधकार्य करना स्वकीय परमकर्तव्य समझा है और उत्साह के साथ इस पवित्र कार्य को पूर्ण करके विषय का समीक्षात्मक अध्ययन प्रस्तुत शोध प्रवन्ध के रूप में है। भारत राष्ट्र के बंगाल, विहार, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात आदि प्रान्तों के प्रमुख नगरों में तथा ग्रामों में श्री सिद्धचक्रविधान, त्रिलोकमण्डलविधान, इन्दध्वजविधान, कल्पद्रुमविधान, नन्दीश्वरविधान, तेरह द्वीपमण्डलविधान आदि विधान (विशेष पूजा) प्रतिवर्ष शुभमुहूर्त में सम्पन्न होते रहते हैं जो बृहत् स्तर पर सामूहिक रूप से समारोहपूर्वक सम्पन्न होते रहते हैं। इस अवसर पर हजारों नर-नारियों का समूह एकत्रित होता है। मन्दिर के बाहर निकट खुले क्षेत्र मैं पाण्डाल बनाया जाता है। जिसमें इन्द्राणी के साथ इन्द्र विशेष अभिषेक पूजा-विधान करते हैं। शास्त्र-प्रवचन होते हैं, आमसभाओं में विद्वानों एवं राष्ट्रीय नेताओं के भाषणों से जनता सम्बोधित होती है। आरती, नृत्य, गान संगीत के साथ होते हैं। प्रबुद्ध चिन्तकों के साथ-साथ राजनेता, विधायक, सांसद, मन्त्री आदि आमन्त्रित किये जाते हैं. उनके स्वागत-तिलककरण के साथ देशहितकारी भाषण प्राक्कथन :: :
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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