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१५वीं, १६वी, १७वीं और १५वी शादी के आकार्ष, भट्टारक और कवि
हैं। चन्द्रकीति ने दक्षिण को यात्रा करते हुए कावेरी नदी के तार पर नरसिंह पट्टन में कृष्ण भट्ट को बाद में पराजित किया था। यह १७वों शताब्दी के विद्वान थे। इनकी निम्न रचनाएं उपलब्ध हैं. पावपुराण, वृषभदेव पुराण, कथाकोश, पद्मपुराण, पंच मरू पूजा, अनंतत्रतपूजा और नन्दीश्वर विधान प्रादि ।
पार्श्वपुराण-१५ सर्गों में विभक्त है, जिसकी पद्य संख्या २७१५ है। इसमें तेवीस तीर्थकर पाश्वनाथ का चरित वणित है । कवि ने इसकी रचना देवगिरि नामक मनोहर नगर के पार्श्वनाथ जिनालय में वि० सं० १६५४ के वैशाख शुक्ला सप्तमी गुरुवार को समाप्त की है।
श्रीमद्देवगिरी मनोहरपरे श्रीपाश्र्थनाथालये, यर्षन्धी पुरसंक मेव (१६५४) इह व श्रीविक्रमांकेश्वर। सप्तम्या गुरुवासरे श्रवण भे वंशाखमासे सिते,
पाश्र्वाधीशपुराणमुत्तममिदं पर्याप्तमेवोत्तरम् ।। (पाश्व० प्र०) वृषभदेव पुराण- इसमें प्रादिनाथ वा चरित वणित है। यह २५ सगों में समाप्त हमा है। कवि ने इस ग्रन्थ में रचना काल ह. चिया, अतः या सगन्नीलन किये बिना यह निश्चय करना कठिन है कि इनमें कौन अन्य पहले बना, और कौन बाद में।
कथा कोश-में सप्त परमस्थान के व्रतों की कथाएं दी हुई हैं, । ग्रन्थ दो अधिकारों में समाप्त हुआ है। ग्रन्थ में रचना काल दिया हया नहीं है। अन्य ग्रन्थ सामने न होने से उनका परिचय दना सम्भव नहीं है। ग्रन्थकर्ता कवि चन्द्रकीति १७वीं शताब्दी के उत्तरार्ध के विद्वान हैं।
भ० सकलभूषण मूलसंघ स्थित नन्दिसंघ और सरस्वती गच्छ के भट्टारक विजय कीर्ति के पशिष्य और भट्टारक शुभचन्द्र के शिष्य एवं भट्टारक सुमति कोति के गुरुभ्राता थे। भ. सुमतिकीर्ति भी शुभचन्द्र के शिष्य थे और उनके शद पट्ट पर बैठे थे।
भ० सकलभुपग ने नेमिचन्द्राचार्य आदि यतियों के ग्रामह तथा वर्धमान टोला आदि की प्रार्थना से उपदेश रत्नमाला नाम के भ्रन्थ की रचना वि० सं० १६२७ में धावण शुक्ला पष्ठी के दिन समाप्त की है। 1 इस ग्रन्थ में १८ अध्याय और तीन हजार तीन सौ तेरासी (३३८३) पद्य हैं।
इनकी दूसरी कृति 'मल्लिनाथचरित्र' है, जिसकी प्रति बूदी के अभिनन्दन स्वामी के मन्दिर के शास्त्र भंडार में उपलब्ध है। अन्य रचनाए अन्वेषणीय हैं । कवि का समय १७ वीं पाताब्दी है।
म. धर्मकोति मलसंघ सरस्वतीगच्छ ओर बलात्कार गण के विद्वान भटारक ललितकीति के शिष्य थे । ललितकीति मालवा की गद्दी के भट्टारक थे। प्रस्तुत धर्मकीति की दो रचनाएं उपलब्ध हैं पद्मपुराण और हरिवंश पुराण । पन पुराण की रचना कवि ने रविषेण के पद्म चरित को देखकर मालव देश में सं० १६६६ में श्रावण महीने की ततियाशनिवार के दिन पूर्ण की थी । और हरिवंश पुराण भी उसी मालवा में सं० १६७१ के पाश्विन महीने की कृष्णा पंचमी
१. सप्तविंशत्यधिके पोडशशतवत्स रेषु (१६२७) विक्रमतः ।
श्रावणमासे शुक्ल पक्षे षष्ठ्या कृतो ग्रन्थः । २३५ -जंन ग्रन्थ प्र० सं० ११० २० २. जैन ग्रन्थ सूची भा० ५ १० ३६६ ६. "संवत्सरे द्वयष्ट शते मनोनें चैकोन सप्तत्यधिके (१६६६) सुमासे ।
श्री श्रावणे सूर्यदिने तृतीयातिथौ च देशेषु हि मालवेषु ।। (पा पु०प्र०)