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१५ौं, १६वी, १७वी और १८वीं शताब्दी के आचार्य, भट्टारक और काय शनिवार है। और दूसरे ग्रन्थ नागकुमार परित्र का रचनाकाल सं. १५७९ है अतः कवि विक्रम को १६वों शताब्दी के तृतीय चरण के विद्वान हैं। अमरसेन चरित्र
इस ग्रन्थ में सात सन्धियो या परिच्छेद हैं, जिनमें प्रमरसेन की जीवन गाथा दी हई है। राजा अमरसेन धर्मनिष्ठ और संयमी था। इसने प्रजा का पुत्रवत पालन किया था। वह देह-भोगों से उदास हो प्रास्म-साधना के लिये उद्यत हुमा । उसने राज्य और वस्त्राभूषण का परित्याग कर दिगम्बर दीक्षा ले ली और शरीर से भी निस्सह हो अत्यन्त भीषण तपश्चरण किया। प्रात्मशोधन की दृष्टि से अनेक यातनाओं को साम्यभाव से सहा । उनकी कठोर साधना का स्मरण माते ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। यह १६वीं शताब्दी का अपभ्रश भाषा का .अच्छा खण्डकाव्य है। मामेरशास्त्र भंडार की इस प्रतिका प्रथम पत्र त्रुटित है। प्रति सं० १५७७ कार्तिक वदी चतुर्थी रविवार को सुनपत में लिखी गई है। यह ग्रन्थ रोहतासपुर के अग्रवाल वन्शी सिंघल गोत्रो साहु महण के पुत्र चौधरी देवराज के अनुरोध से रचा गया है और उन्हीं के नामांकित किया गया है। प्रशस्ति में इनके वंश का विस्तृत परिचय दिया हुआ है। नागकुमार चरित्र
दसरी रचना नागकमार चरित है। जिसमें चार सन्धियां हैं जिसकी श्लोक संख्या ३३०० के लगभग है। जिनमें नागकुमार का पावन चरित अंकित किया गया है। चरित वही है जिसे पुष्पदंतादि कवियों ने लिखा है। उस में कोई खास वैशिष्टय नहीं पाया जाता। ग्रन्थ की भाषा सरल और हिन्दी के विकास को लिये हुए है। इस खण्डकाव्य के भी प्रारम्भ के दो पत्र नहीं हैं। जिससे प्रति खण्डित हो गई है। उससे पाद्य प्रशस्ति का भी कुछ भाग बृटित हो गया है। कवि ने यह ग्रन्थ साहू जममी के पुत्र साहू टोडरमल की प्रेरणा से बनाया है। साहू टोडरमल का वंश इक्ष्वाकु था और कुल जायसवाल । टोडरमल धर्मात्मा या वह दानपूजादि धार्मिक कार्यों में सलग्न रहता था । और प्रकृतित: दयालु था। कवि ने अन्य उसी के अनुरोध से बनाया है, और उसी के नामांकन किया है। प्रन्थ की कुछ सन्धियों में कतिपय संस्कृत के पद्य भी पाये जाते हैं, जिनमें साह टोडरमल का खला यशोगान किया गया है। उसे कर्ण के समान दानी, विद्वज्जनों का सम्पोषक, रूप लावण्य से युक्त और विवेकी बतलाया है।
कदि ने चौथी संधि के प्रारम्भ में साहू टोडरमल का जयघोष करते हुए लिखा है कि वह राज्य सभा में मान्य
१. विकाम रापहु ववगम कालई । लेसु मुणीस विसर अकालई!
धरणि बकसह चइत विमासे, सरिणवारे सुय पंचमी दिवसे। -अमरसेन प० प्रश. २. यादय या जायस वंश का इतिहास प्राचीन है। परन्तु उसके सम्बन्ध में कोई अन्वेषण नहीं हुआ। जैसा से जैसवालों की
कल्पना की गई है किन्तु ग्रन्थ प्रशस्तियों में यादव, जायस आदि नाम मिलते हैं, अत: इन्हें यदुवंशियों की सन्तान बताया जाता है। उसी यदु या यादव का अपभ्रश जादव या जायस जान पड़ता है। यदु एक क्षत्रिय राजवंश है, उसका विशाल राज्य रहा है। शौरीपुर से लेकर मथुरा और उसके आस-पास के प्रदेश उसके द्वारा शासित रहे हैं। यादव वंशी जरासंघ के भय से पौरीपुर को छोड़कर द्वारावती (द्वारिका) में बस गये थे। श्रीकृष्ण का जन्म यदुकुल में हुआ या, और जैनियों के २२२ तीर्थकर नेमिनाथ का जन्म भी उसी कूल में हुमा था, वे कृष्ण के परे भाई थे। जायस वंश में अनेक प्रतिष्ठित व्यक्ति हुए हैं। अनेक ग्रन्यकर्ता, विद्वान, धेष्ठी राजमान्य तथा राजमन्त्री भो रहे हैं। उनके . द्वारा जिन मन्दिरों का निर्माण और प्रतिष्ठादि कार्य भी सम्पन्न हुए हैं। प्रस्तुत टोडरमल और कवि मणिक राम
उसी वंश के वंशज हैं। ३. "जइसवाल कुल संपन्नः दान-पूय-परायणः ।
जगसी नन्दनः श्रीमान् टोडरमल चिरं जियः ॥"