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जैन धर्म का प्राचीन इतिहास - भाग २
चनाएँ उपलब्ध हैं । वे सब ग्रन्थ चरित पुराण और कथा सम्बन्धी हैं। पूजा सम्बन्धी साहित्य भी आपका रवा हुआ होगा | अंतरीक्ष पार्श्वनाथ पूजा आपकी लिखी हुई पाई जाती है। आपका समय विक्रम की १६वीं शताब्दी का तृतीय चतुर्थ चरण है। क्योंकि इन्होंने आराधना कथाकोश सं० १५७५ बौर श्रीपाल चरित सं० १५८५ में बनाकर समाप्त किया है। इनका जन्मकाल सं० १५५० या १५५५ के ग्रासपास का जान पड़ता है।
रचनाएँ
(१) आराधना कथा कोश (२) रात्रिभोजन त्याग कथा (३) सुदर्शन चरित (४) श्रीपाल चरित ( ५ ) धर्मों देशी वर्षे श्रावकाचार (६) नेमिनाथ पुराण (७) प्रीतिकर महामुनि चरित (८) धन्य कुमार चरित (१) नेमिनिर्माण काव्य ( ईडर भंडार) (१०) भर अन्तरीक्ष पार्श्वनाथ पूजा। इनके अतिरिक्त हिन्दी भाषा की भी दो रचनाएं उपलब्ध हैं | मालारोहिणी (फुल्ल माल) और आदित्य व्रतरास इन दोनों रचनाओं का परिचय अनेकान्त वर्ष १८ कि दो पर देखना कहिए । नेमिदत्त के आराधना कथा कोश के प्रतिरिक्त अन्य रचनाएँ अभी प्रकाशित हैं। रचनाएँ सामने नहीं है । श्रतः उनका परिचय देना शक्य नहीं है। नेमिनाथ पुराण का हिन्दी अनुवाद सूरत से प्रकाशित हुआ | पर मूल रूप छपा हुआ मेरे अवलोकन में नहीं आया ।
म० श्रभिनव धर्मभूषण
धर्मभूषण नाम के अनेक विद्वान हो गये हैं। प्रस्तुत धर्मभूषण उनसे भिन्न है। क्योंकि इन्होंने अपने को 'अभिनव' 'यति' और 'आचार्य विशेषणों के साथ उल्लेखित किया है। यह मूलसंघ में नन्दिसंघस्थ बलात्कारगण सरस्वति गच्छ के विद्वान भट्टारक वर्द्धमान के शिष्य थे। विजय नगर के द्वितीय शिलालेख में उनकी गुरुपरम्परा का उल्लेख निम्न प्रकार पाया जाता है- पद्मनन्दी, धर्मभूषण, अमरकीर्ति, धर्मभूषण, वर्द्धमान, और घमंभूषणः ।
यह अच्छे विद्वान व्याख्याता और प्रतिभाशाली थे । इनका व्यक्तित्व महान् था। विजयनगर का राजा देवराय प्रथम, जो राजाधिराज परमेश्वर की उपाधि से विभूषित था, इनके चरण कमलों की पूजा किया करता था। राजाधिराज परमेश्वर देवराय, भूपाल मौलिलसधि सरोजयुग्मः | श्रीवर्द्धमान मुनि वल्लभ मौक्ष्य मुख्य; श्रीधर्मभूषण सुखी जयति क्षमादयः ॥
दशभक्त्यादि महाशास्त्र
इस राजा देवराय प्रथम की महारानी भीमा देवी जैनधर्म की परम भक्त थो। इसने श्रवण बेलगोल को मंगायी वसदि में शान्तिनाथ की मूर्ति प्रतिष्ठित कराई थी और दान दिया था। इसका राज्य सन् १४१६ ई० तक रहा है। विजय नगर के द्वितीय शिलालेख में जो शक सं० १३०७ (सन् १३८५) का उत्कीर्ण किया हुआ है। इससे इन धर्मभूषण का समय ईसा की १४वीं शताब्दी का उत्तरार्ध और १५वीं शताब्दो का पूर्वाधं सुनिश्चित है।
इसमें मन्देह नहीं कि अभिनव धर्मभूषण अपने समय के प्रसिद्ध विद्वान थे। पद्मावती देवों के शासन लेख में इन्हें बड़ा विद्वान और वक्ता प्रकट किया है । यह मुनियों और राजाओं से पूजित थे ।
१. शिष्यस्तस्य गुरोरासी दुधभूषण देशकः । "
भट्टारक मुनिः श्रीमान् शल्य विवर्जितः। विजय नगर द्वि० शिलालेख "मदगुरो मानिशो वर्तमान दयानिधेः ।
-न्याय दीपिका प्रशस्ति
श्री गद स्नेह सम्बन्धात् सिद्धेयं न्याय दीपिका ॥ २. विजयनगर का द्वितीय शिलालेख, जैन सि० भास्कर भा० १ किरण ४ पृ० ८६
३. प्रशस्ति संग्रह, जैन सिद्धान्तभवन द्वारा पृ० १२५ | ४. मिडियावल जैनिज्म पृ० २६९ ।