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जैन धर्म का प्राचीन इतिहास-भाग २
भ० कमल कीति
यह काष्ठासंघ माथुरगच्छ और पुष्करगण के विद्वान भट्टारक अमलकीति के पट्टधर थे। उनकी मुरु परम्परा क्षेमकीति, हेमकीति अमलकीति कमलकीर्ति यह परम्परा सं० १५२५ के ग्वालियर के मूर्ति लेख में पाई जाती है। इसी सम्वत् दुसरे लेख में, समलकीरिकबाद संयभकीति का नाम मिलता है। कमलकीति केपद पर सोना गिर में शुभचन्द्र प्रतिष्ठित हुए थे। इसका उल्लेख कवि रइधू ने किया है । इससे स्पष्ट है कि ग्वालियर का एक पट्ट सोना गिर में था, और उस पर कमलकीति प्रतिष्ठित थे। उन्हीं के पट्ट पर शुभचन्द्रप्रतिष्ठितहुए थे । अतः ये सब भट्टारक १५वीं शताब्दी विद्यमानमें रहे हैं।
कमलकित्ति उसमखमधारउ, भव्यभवाम्भोणिहितारउ । तस्स पट्टकणयट्टिपरिटिज, सिरि सुहबन्दसु लय उपकठ्ठि ।
हरिवंशपुराण, मावि प्र. जिणसुत्त प्रत्य अलहंतएण सिरिकमलफिति पयसेवएण । सिरि के जकित्ति पटवरेसु, तच्चस्थ सस्थभासणदि सु। उहण मिच्छत्ततमोहणास, सहचन्द भष्ठारउ सुजस वासु।
हरि अन्तिम प्र. कमलकीति की एकमात्र रचना 'तत्वसार' टीका है। यह देवसेन के तत्वसार को टीका है जिसे कमल कीति ने कायस्थ माथुरान्वय में अग्रणी अमरसिंह के मानस रूपी अरविन्द को विकसित करने के लिए दिनकर (सूर्य) स्वरूप इस टीका को रचना की है अर्थात् यह टीका उनके लिए लिखी गई है। प्रस्तुत कमलकीर्ति वहीं हैं जिन का उल्लेख कवि रइधू ने हरिवंश पुराण में किया है और जिसका उल्लेख सं० १५२५ के कवि रइधू द्वारा प्रतिष्ठित मूर्ति लेख में हमा है। अत: इनका समय १५वीं शताब्दी का उत्तारधं जान पड़ता है।
कवि चन्द्रसेन इन्होंने अपना परिचय देने की कोई कृपा नहीं की । कवि की एकमात्र लघु कृति अपभ्रंश भाषा को १० पद्यात्मक 'जयमाला' उपलब्ध है जिसमें सिद्धचक्र व्रत के माहात्म्य को ख्यापित किया गया है और बतलाया है कि सिद्धचक्र व्रत का मन में अच्छी तरह चिन्तन करने से व्यक्ति के ज्वर, क्षय, गंडमाला, कूष्ट शूल आदि रोग नष्ट हो जाते हैं तथा सिद्धचक्र का स्मरण करने वाले व्यक्ति के सभी बन्धन, चौरादिक का भय और विपदाएं विनष्ट हो जाती हैं । परन्तु इसका स्मरण भावात्मक और निश्चल होना चाहिये।
घत्ता-इय वर जयमाला परमरसाला विधुसेणेन वि कहिय हि ।
__जो पदइ पढावइ निय मणिभावह सोणरु पावह सिद्ध सुहम् ।। कवि ने जयमाला का रचनाकाल नहीं दिया। पर लगताहै कि कवि की यह रचना १५वीं शताब्दी के लगभग होगी।
कवि गोविन्द इनकी जाति अग्रवाल और गोत्र 'गर्ग' था। इनके पिता का नाम साह हीमा और माता का नाम पद्मश्री था। यह जिनशासन के भक्त थे। यह संस्कृत भाषा के अच्छे विद्वान थे। इनकी एकमात्र कृति 'पुरुषार्थानुशासन' है। ग्रन्थ में उल्लेख है कि माथुर कायस्थों के वंश में खेतल हुमा जो बन्धुलोक रूपी तारागणों से चन्द्रमा के समान प्रकाशमान था। खेतल के रतिपाल नाम का पुत्र हमा, रतिपाल के गदापर पोर गदाधर के अमरसिंह और अमरसिंह के लक्ष्मण नाम का पुत्र हुआ, जिसकी ग्रन्थ प्रशस्ति में बड़ी प्रशंसा की गई है । प्रमरसिंह मुहम्मद बादशाह के द्वारा अधिकारियों में सम्मिलित होकर प्रधानता को पाकर के भी गर्व को प्राप्त नहीं हुमा। वह प्रकृतितः