________________
मन्तिम केवली जम्बू स्वामी
मनि अवस्था में एक दिन जम्बूकुमार पाहार के लिये राजगह नगर में गए, और वहाँ जिनदास सेठ में नवधा भक्तिपूर्वक आहार दिया। निर्दोष पाहार देने के कारण सेठ के आंगन में दानातिशय से पत्रारचर्य हए। आहार लेकर मुनिराज उपवन में प्रा गए, और ज्ञान-ध्यान में तत्पर हो गए। इन्द्रिय विकारों को जीतने के लिए धे कभी उपवास रखते, और कभी रस का परित्याग करते थे। जम्बूकूमार जितने सुकुमार थे, वे उतने ही सहिष्ण सायीबाहीर निवेको थे। उनकी शान्त मुद्रा और यात्म-तेज देखकर सभी आश्चर्य करते थे । वे यथाजात मुद्रा के धारी तो थे ही, साथ ही मन-वचन और काय को वश में करने के लिए गुप्तियों का अवलम्बन लेते थे। ध्यान और अध्ययन में प्रवृत्ति होने के कारण वे द्वादशांग के पारगामी युतकेवली हो गए और सुधर्मस्वामी केवलज्ञानी हो गए। अब सब संघ का भार जम्बू स्वामी वहन करने लगे । बारह वर्ष बाद मूधर्म स्वामी का विपलाचल से निर्वाण हो गया और जम्बू स्वामी को घाति कर्म के प्रभाव से केवलज्ञान प्राप्त हो गया। जम्ब स्वामी ने केवली अवस्था में ३० वर्ष तक विविध देशों और नगरों में विहार कर वोर शासन का प्रचार व प्रसार किया। अन्त में विपुलाचल से ७५ वर्ग की बय में शुक्ल ध्यान द्वारा कर्म कलंक को दग्ध कर अविनाशी पद प्राप्त किया।
जम्बकूमार के दीक्षा लेने के बाद उनके माता-पिता और चारों पत्नियों ने भी दीक्षा लेकर तमचरण किया, और अपने परिणामानुसार उच्च गति प्राप्त की।
विद्युतचर ने भी अपने पांच सौ साथियों के साथ चौर कर्म का परित्याग कर दिगम्बर दीक्षा ले लो और तपश्चरण द्वारा प्रात्म-शुद्धि करने लगे। वे मुनियों के प्रयोदश प्रकार के चारित्र के धारक तथा पांच समितियों में प्रवृत्ति करते थे। तीन गुप्तियों का भी पालन करते थे, इस तरह वे मुनि प्राचाराङ्ग (मूलाचार) के अनुसार प्रवृत्ति करते हुए अपने शिष्यों के साथ ताम्रलिप्त नगरी में आए। वे नगर के बाहर उद्यान में विराजे। उस समय दिन प्रस्त हो रहा था, तब दुर्गा देवी ने भक्ति से विद्युतचर से कहा कि यहां पांच दिन तक मेरी पूजा होगी उसमें रोद्र भुत सम्प्रदाय ग्रामन्त्रित है, वह तुम्हें असह्य उपसर्ग करेगा। अतएव जब तक यात्रा है तब तक इस पूरी को छोड़कर अन्यत्र चले जाइए। यह कह कर बह चली गई। यतिवर विद्युतचर ने मुनियों से कहा-अच्छा हो प्राप लोग इस स्थान को छोड़कर अन्यत्र चले जायं। तब उन्होंने कहा-रात्रि व्यतीत हो जाय, तब हम चले जावेगे। रात्रि में गमन करना मुनियों के लिये बजित है। उपसर्ग से डरने वालों को क्या लाभ हो सकता है ? उपसर्ग सहन करना साधुनों के लिए श्रेयस्कर है। अत: सब साधु मौनपूर्वक ध्यान में स्थित हो गए। रात्रि में भयंकर भूतों ने असह्म उपसर्ग किया। बड़े-बड़े डांस मच्छरों की वाधा हुई। शरीर को कष्ट देने वाले घोर उपसर्गए, जिन्हें सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। ऐसा होने पर वे सब साध स्थिर न रह सके और ध्यान छोड़कर दिवंगत हुए। किन्तु विद्युतचर अदीन मन से घोर उपसर्ग सहते हुए भी बड़े धैर्य के साथ मेम्बत स्वरूप में
१. बारह वासारिण कंवलि विहारेण बिहरिय लोहज भडारा गिबुदे मने जंबू भडाग्मो केवलणाणमंताणही जादा । प्रदत्तीसवम्साणि केवलि बिहारेण वित्रिय जंतु भडागा परिगिब्बुदे संते केवलणारण सनारगम वोच्दो जादा भरह पत्तम्मि ।
-(धवना ए० ए० १३०) २. विउल्लारि सिहरि कम्मदइवत्त, सिहालय मासय सोकर एन ।।
-जंतुसामिचरिउ १०-२४ पृ० २१५ ३. पत्ता--यह मवरणसंघमंजुर गवर, एयारमंगया विजुचर।
विहरतु लवेश विराइबर, पृरि तामनित्ति संपाइयउ ।। नपराउ नियडे रिसिमंधे धक्क, अस्थवणहो कुक्कए भूरचक्के । • मह पावा तामककाभिधारि, कंचायणि नामें भद्दमारि । . पाहासइ मत्रिणय दिवमपंच, महजत्त हबेसइ सप्पवंच । आमंतियभूयावलिाउद्द, उनसम्पु करेसह तुम्ह खुद्द । इप कज्जे अण्ण हि विहिन ताम, पुनि मेल वि गच्छद जन जाम । गय एम कहे वि जो जपत्ररेण, मरिण भणिय एम विजुच्चरंगा ।। -जम्बू स्वामी चरिउ प० २१६