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________________ ४e४ जैन धर्म का प्राचीन इतिहास - भाग २ में शास्त्रों में निपुण थे । भव्यरूपी कमलों को विकसित करने वाले सूर्य थे। वे संघ सहित विहार करते हुए सकीट नगर 'भाए, जो एटा जिले में है इन्होंने सकीटनगर ( एटा जिला ) वासी लम्बकंचुक (लमेचू) आम्नाय के साहु के पुत्र पं० सोनिक' को प्रार्थना पर तत्त्वार्थ सूत्र को 'तत्त्वार्थ रत्न प्रभाकर नाम की टीका वि०सं० १४८६ मं सकत ब्रह्मचारी जैताख्य के प्रबोधार्थं लिखी थी । इससे इन प्रमाचन्द्र का समय विक्रम को १५वीं शताब्दा सुनिशंचत है । काल्हू पुत्र हावा साधू की प्रार्थना से उक्त टिप्पण बनाया गया और उन्हीं के नामांकित किया है । जसा कि उसके निम्न पुष्पिका वाक्य से प्रकट है : इति श्री भट्टारक धर्मचन्द्र शिष्य गणिप्रभाचन्द्र विरचिते तत्त्वार्थ टिप्पणके ब्रह्मचारि जेता साधु हावादेव नामांकिते दर्शमोऽध्यायः समाप्तः । म० शुमकीर्ति शुभकीर्ति नाम के अनेक विद्वान हो गए हैं। उनमें एक शुभकीर्ति वादन्द्र विशाल कीर्ति के पट्टधर थे । इनकी बुद्धि पंचाचार के पालन से पवित्र वाले उन्मार्ग के विधि विधान ब्रह्मा के तुल्य थे, मुनियों में श्रेष्ठ और शुभ प्रदाता थे। इनका समय विक्रम की १३वीं शताब्दी है । दूसरे शुभकीर्ति कुन्दकुन्दान्वयी प्रभावशाली रामचन्द्र के शिष्य थे। और तीसरे शुभकोति प्रस्तुत शान्तिनाथ चारत के कर्ता हैं। जो देवकीति के समकालीन थे, उन्होंने प्रभाचन्द्र के प्रसाद से शान्तिनाथ चरित की रचना की थी कवि ने अपनी गुरुपरम्परा और जीवन घटना के सम्बन्ध में कोई प्रकाश नहीं डाला । ग्रन्थ की पुष्पिका वाक्य में उ भासा चक्का वट्टि सुह कित्तिदेव विरइए' पद दिया है, जिससे वे अपभ्रंश और संस्कृत भाषा में निष्णात विद्वान थे । कविने ग्रन्थ के अन्त में देवकीर्ति का उल्लेख किया हैं। एक देवकीर्ति काष्ठासंघ माथुरान्वय के विद्वान थे उनके द्वारा सं० १४६४ आषाढ वदि २ के दिन प्रतिष्ठित एक धातु मुर्ति ग्रागरा के कचौडा बाजार के मन्दिर में विराज मान है। हो सकता है कि प्रस्तुत शुभकीर्ति देवकीर्ति के समकालीन हों, या किसी अन्य देव कीर्ति के समकालीन १. प्राप्त पुरे सकीटाये समातीतो जिनालये । लम्बकंचुक आम्नाये सकतू साधुनन्दनः || ११ पंडित सोनिको विद्वान जिनपादाब्जषट्पदः । सम्यग्दृष्टि गुणावासो वृष-शीषं शिरोमणिः ॥ १२ ( आदि प्रशस्ति ) २. अस्मिन्संवत्सरे विक्रमादित्य नृपतेः गते । चतुर्दशतेऽतीतेनवासीत्यब्द संयुते ॥ १३ भाद्रपदे शुक्ले पंचमी वासरे शुभे । वारेऽक वैधृतियोगे विशाला ऋक्ष के बरे ।।१४ तत्त्वार्थ टिप्पणं भद्र प्रभाचन्द्र तपस्विता । ३... कृत मिदं प्रबोधाय जैतास्य ब्रह्मचारिणे ।।१५ ( अन्तिम प्र० ) ...... तपो महात्मा शुभकीर्ति देवः । कन्तरात विधानाद्वाते सन्मार्गविधे विधाने । - पट्टावली शुभचन्द्रः तत्पट्टे जनि विख्यातः पं वा चार पवित्रधीः । शुभकीति मुनि श्रेष्ठ शुभकीर्ति शुभप्रदः ॥ ४. श्री कुंदकुंदस्य बभ्रुवक्शे श्री रामचन्द्र प्रथतः प्रभावः शिष्यस्तदीय: शुभकीर्तिनामा तरोंगना बक्ष सि हारभूतः ॥ ७ प्रद्योतने सम्प्रति तस्य पट्टे विद्या प्रभावेण विशालकीतिः । शिष्यैरनेकं रुपसेव्यमान एकान्तवादादि विनाश वचय ॥ ८ ५. सं० १४६४ - सुदर्शन चरित्र - धर्मशर्माभ्युदय लिपि प्र० यदि २ काष्ठासं माथुरान्वये श्री देवकीर्ति प्रतिष्ठिता ।
SR No.090193
Book TitleJain Dharma ka Prachin Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size19 MB
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