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भद्र सूरिवितो या कमः ।।
तेरहवीं पोर चौधहवीं शताब्दी के विद्वान, आचार्य और कवि
कारवा शास्त्र भंडार' की प्रशस्ति में ग्रन्थ का रचना काल शक सं०१२४१ सिद्धार्थ संवत्सर बतलाया है। प्रय्यपार्य ने इस ग्रन्थ की रचना पुष्पसेनाचार्य के प्रादेश से शक १२४१ (सन् १३१६) माघ शुक्ला दशमी रविवार के दिन पुष्प नक्षत्र में एक शैल नगर में रुद्र कुमार के राज्यकाल में की है, जैसा कि उसके निम्न पञ्च से प्रकट है :
शाकाम्दे विधुवेदनेत्रहिमगे (१) सिद्धार्थ संवत्सरे। माघेमासि विशद्ध पक्ष वशमी पुण्यार्करऽहनि । ग्रन्थो रुद्रकुमार राज्य विषये जैनेन्द्र कल्याणभाक ।
सम्पूर्णोऽभवदेक शैलनगरे श्रीपाल बजितः।। कवि ने लिखा है जिनसेन गुणभद्र, वसनन्दि, इन्द्रनन्दि पाशाधर और हस्तिमल्ल प्रादि विद्वानों द्वारा कथित ग्रन्थों का सार लेकर इस ग्रन्थ की रचना की है:
वीराचार्य सपज्यपाय जिनसेनाचार्य संभाषितो। यः पूर्व गुणभद्र सूरिवसुनन्दोन्द्रादिन धूर्जितः । यश्चाशापर हस्तिमल्ल कथितो यश्चक संधीरितः ।
तेभ्यः स्वहृतसारमार्यरचितः स्थाजन पूजा कमः ॥१६ यही बात ग्रन्थ को अन्तिम पुष्पिका वाक्य से भी स्पष्ट है
'इति श्री सकल ताकिकबक्रतिश्रीसमन्तभद्र मुनीश्वर प्रभूति कवि वृन्दारक वन्धमान सरोवर राज इंसायमान भगववाहतप्रतिमाभिषेक विशेष विशिष्ट गन्धोदकपवित्री कृतोत्तमाले वाग्यपार्येण श्री पुष्पसेनाचार्योपदेश क्रमेण सम्यरिषचार्य पूर्वशास्र म्यः सारमुत्य विरचितः थी जिनेन्द्र कल्याणाम्युदयापरनामषेयस्त्रि यशाम्युदमोहंत प्रतिष्ठा प्रन्थः समाप्तः ।
प्रस्तुत प्रशस्ति में ग्रन्थ का रचनास्थल एक शैलनगर बतलाया है, जो वर्तमान वरंगल का प्राचीन नाम हैवरंगल के और भी कई नाम हैं। यह प्राचीन नगर तैलंग देश को राजधानी था। काकतेयों ने इस पर सन् १११०ई० से १३२३ ई० तक राज्य किया है । इसी वंश में रुद्रदेव हुए है । जान पड़ता है रुद्रदेव इस वंश के अन्तिम राजा थे। क्योंकि इस ग्रन्थ की रचना सन् १३१६-२०ई० में हुई है। उस समय वे वहाँ शासन कर रहे थे। प्रतएव अय्यपार्य वि० सं० १३७६ के विद्वान हैं।
माधनन्दि योगीन्द्र प्रस्तुत माधनन्दि मूलसंघ-नन्दिसंघबलात्कार गण के विद्वान कुमुदेन्दु योगी के शिष्य थे। इन्हें सन् १२६५ ई०
4. See catalogse song krit and prakrit manuscripts in the cenintral Province and berari
रायबहादुर हीरालाल द्वारा सम्पादित २. हिन्दी विश्व कोष भा०३१० ४६६ और list of the - Aniquuarian remains in the Nizams, territories
By consens. Another name of warrangalxx,is Akshalinagar, which in the of nar. consens is the same yekshilanagara,,
-TheGeographycal dictionary of Anecent and Midicavai India Naudlal Day p. 8 ३. अनुमकुन्दपुर, अनुमकन्द पट्टम, कोरुकोल (of Ptalemy) वेणाटक, एक शेल नगर अादि (the geoprophical Cor's
tionary (p. 262) ४. रुव देव का शिलालेख JASB, 1834 P०१०३ साय ही peof Wilsons Mackenzie collection p.16 ५. The Jcopraphical dictionorp p. 8 ६. बरंगलके का कतीयवंशी एक राजा xxx, I हिन्दी विश्वकोप भाग १२१६२७ ।