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________________ ४४० कृति १३वीं १४वीं शताब्दी को हो सकती है । कुलभद्र का यह ग्रन्थ धर्म और नीति का प्रधान सूक्ति काव्य है । जैन धर्म का प्राचीन इतिहास - भाग २ नास्ति काम समो व्याधिर्नास्ति मोह समोरिपुः । नास्ति कोष समोह्निर्नास्ति ज्ञान सम सुखम् ॥२७ विषयोरगदष्टस्य कषाय वियमोहितः । संयमी हि महामंत्रस्त्राता सर्वत्रदेहिनम् ॥३० धर्मामृतं सवा पेयं दुःखातङ्क विनाशनम् । यस्मिन्पीते परं सौख्यं जीवानां जायते सदा ॥६३ कवि नागराज यह कौशिक गोत्रीय सेडिम्ब (सेडम) के निवासी थे। जहां अनेक जिन मन्दिर बने हुए थे। इनके पिता का नाम विवेक विट्ठलदेव था, जो जिन शासन दीपक थे और माता का नाम भागीरथी, भाई का नाम तिप्परस था और गुरु अनन्त वीर्य मुनीन्द्र थे । ग्रन्थ की पुष्पिकाओं में उन्होंने अपने को मासिवालद नागराज कहा है । 'सरस्वती मुख-तिलक, कवि- मुख-मुकुर' उभय कविता विलास आदि उनकी उपाधियां थीं । ग्रंथ के प्रारम्भ में जिनेन्द्र, पंच पर मेष्ठी, सरस्वती आदि के स्तवन के पश्चात् उन्होंने वीरसेन, जिनसेन, सिनन्दि, गृद्ध पिच्छ, कोण्डकुन्द, गुणभद्र, पूज्यपाद, समन्तभद्र, अकलंक कुमारसेन (सेनगणाधीश) धरसेन और अनन्तवीर्य आदि पूर्ववर्ती आचार्यों का उल्लेख किया है । उन्होंने पम्प, बन्धुवर्म, पोन्न, रन्न, गजांकुश, गुणदर्म और नागचन्द्र यादि पूर्ववर्ती कन्नड़ कवियों से प्रोत्साहन प्राप्त किया था । रचना वास्तव म्पू जिसमें २२ अध्याय और ५२ कथाएं हैं। कवि ने सगर के लोगों के हितार्थ अपने गुरु अनन्तवीर्य की आज्ञा से शक संवत् १२५३ सन् १३३१ ई० में संस्कृत से कन्नड़ में रूपान्तर किया है । कवि ने सूचित किया है कि उनकी इस कृति को आर्यसेन ने सुधार कर चित्ताकर्षक बनाया । प्रभाचन्द्र यह मूलसंघ देशीयगण पुस्तक गच्छ के विद्वान थे। और श्रुत मुनि के विद्यागुरु थे। जो सारत्रय में निपुण थे । इससे यह समयसार, प्रवचनसार और पंचास्तिकाय के ज्ञाता जान पड़ते हैं । यह प्रभाचन्द्र विक्रमको १३वों शताब्दी के उपान्त्य बोर १४वीं शताब्दी के पूर्वाधं के विद्वान जान पड़ते हैं। क्योंकि अभयचन्द्र सैद्धान्तिक के शिष्य बालचन्द्र मुनि ने जो श्रुतमुनि के प्रणुव्रत गुरु होने से उनके प्रायः समकालीन थे । इन्होंने शक सं० ११६५ (वि० स० १३३०) में द्रव्य संग्रह पर टोका लिखी है । दिगम्बर जैन ग्रन्थ कर्ता और उनके ग्रन्थ; नाम की सूची में उनका समय वि० सं० १३१६ का उल्लेख है, जो प्रायः ठीक जान पड़ता है । मधुर कवि यह वाजिवंश के भारद्वाज गोत्र में उत्पन्न हुआ था । इनके पिता का नाम विष्णु और माता का नाम नागाम्बिकाया । बुक्कराय के पुत्र हरिहर (द्वितीय १३७७- १४०४ ई० ) का मन्त्री इसका पोषक था। (भूनाथास्थान चूड़ामणि मधुर कवीन्द्र ) विशेषण से यह ज्ञात होता है कि यह हरिहर राय द्वितीय का प्रस्थान कवि या सभा कवि था।' इसी राजा के राज्यकाल में रत्न करण्ड कन्नड़ के कर्ता श्रायतवर्मा और परमागमसार के कर्ता चन्द्रकीति भी हुए हैं । कविविलास, कविराज कला विलास, कवि माधव मधुरमाधव, सरस कवि रसालवन्त भारती' मानस केलि राजहंस श्रादि इसको उपाधियां थीं। इसको दो कृतियाँ प्राप्त हैं । धर्मनाथ पुराण और गोम्मटाष्टक | यद्यपि धर्मनाथ पुराण पूरा नहीं मिलता । पर उपलब्ध भाग से भाषा की प्रौढ़ता और कविता हृदयहारिणी और सुन्दर है । कवि का समय ईसा की १४वीं शताब्दी है ।
SR No.090193
Book TitleJain Dharma ka Prachin Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size19 MB
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