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तेरहवीं और चोदताब्दी के आचार्य विद्वान और कवि
प्रस्तुत ग्रन्थ में संस्कृत के २५२ श्लोक हैं। जिनमें ग्राराधना, आराधक, ग्राराधनोपाय तथा आराधना का फल, इन चारों की आराधना के चार चरण बतलाये हैं । गुण-गुणी के भेदसे आराधना के दो प्रकार बतलाये हैं। साथ में सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान, सम्यक् चारित्र और सम्यक् तप ये आराधना के चार गुण कहे। इन चारों माराधनाओं के स्वरूप और मे प्रभेदों का सुन्दर वर्णन दिया है। चारित्र साधना का स्वरूप और भेद-प्रभेदों का उनका काल पोर स्वामी बतलाये हैं सम्यक तप आराधना के स्वरूप भेद प्रभेद वर्णन करने के पश्चात् ध्यान के भेद और स्वामी आदि का परिचय कराया गया है। द्वादश अनुप्रेक्षाओं का वर्णन संस्थान विचयमध्यान में परिणत कर दिया है।
* इस ग्रन्थ के कर्ता वर्तमान मैसूर दिया हुआ नहीं है ।
है। प्रन्थ में रचनाकाल
कवि ग्रहंदास
यह जैन ब्राह्मण थे। इनके पिता का नाम नागकुमार था। यह कन्नड़ भाषा के प्रकाण्ड विद्वान थे। कवि का समय सन् १३०० ईस्वी के आस-पास है यह गंग मारसिंह के चमूपति कामरस का वंशज है। कामरस वड़ा वीर और पराक्रमी था । वारेन्दुर के जीतने वाले राजा मारसिंह का एक किला था। इस किले को किसी चकवत की सेनाने घेर लिया था। मारसिंह की मामा से काठमरस ने बड़ी बहादुरी के साथ चश्वर्ती की सेना को भगा दो, और ना गिरादी तथा बारह सामन्त योद्धाओं को परास्त किया। इससे राजा बहुत प्रसन्न हुआ। अतएव उसने कामरस को २५ ग्रामों की एक जागीर पारितोषिक में दे दी। इसी काडमरस को १५वीं पीढ़ी में नागकुमार नाम का व्यक्ति हुआ। कविरह या महंदास इसी नागकुमार का पुत्र था।
इसने कन्नड में घटुमत नाम के महत्वपूर्ण ज्योतिष ग्रन्थ की रचना की है। यह पूरा नहीं मिलता शतकी १४वीं शताब्दी में भास्कर नाम के आन्ध्र कवि ने इस ग्रन्थ का तेलगू भाषा में अनुवाद किया था। इस ग्रन्थ के उपलब्ध भाग में वर्षा के चिन्ह प्राकस्मिकलक्षण, शकुन वायुचक गृहप्रवेश भूकंप भूजात फल, उत्पात लक्षण इन्द्र धनुक्षण प्रथम गर्भलक्षण, द्रोण संख्श, विद्युतलक्षण, प्रतिसूर्यलक्षण संवत्सरफल, प्रद्वेष मेघों के नाम कुलवर्ण, ध्वनिविचार देशवृष्टि, मासफल, नक्षत्रफल, मीर संक्रान्तिफल चादि विषयों का निरूपण किया गया है।
बालचन्द्र पण्डितदेव
बालचन्द्र नाम के अनेक विद्वान हो गए हैं। उनमें से एक बालचन्द्र का उल्लेख कम्बदहल्लों में कम्बराय स्तम्भ में मिलता है। इनका समय शक सं० १०४० वि० सं० २१५७) है। इनके गुरु का नाम शान्तार्णव पारग अनन्तवोयं और शिष्य का नाम सिद्धान्ताम्भोनिधि प्रभाचन्द्र था । ( जैन लेख सं० भा० २ लेख नं० २६० पृ० ३६६ ) दूसरे हैं जिनका उल्लेख बुवनहल्लि (मैसूर) के १० वीं सदी के कन्नड़ लेख में बालचन्द्र सिद्धान् भट्टारक के शिष्य कमलभद्र गुरुद्वारा एक मूर्ति की स्थापना की गई थी। (जैन लेख सं० भाग ४ १०७०) ।
तीसरे बालचन्द्र वे हैं जिनको क सं १६६ में उत्तरायण संक्रान्ति के समय वापनीय संघ पुन्नाग वृक्ष मूलगण के बालचन्द्र भट्टारक को कुछ दान दिया गया था। (जंन लेख [सं० भा० ४५०८१) ।
चौथे बालचन्द्र वे हैं जिनको सन् १११२ में मूलसंघ देशीगण पुस्तक गच्छ के आचार्य वर्धमान मुनि के शिष्य
दूरी पर अवस्थित सोने (पनसोगे) ही वाराधना आदिनाथ और मेशिनाथ की मूर्तियां विराजमान है। २. श्री रविन्द्र पनोगे ग्राम वाग्रिम्भः । रचितोऽयमतिशास्त्र प्रयोग विज्ञमनोहारी ।। ४२
१. पं० के भुजवली शास्त्री के अनुसार मैसूर जिलान्तर्खति कृष्णराजनगर तालुके में साले ग्राम से लगभग ५ मील की समुच्चय का रचनात्मन है। यहां एक कूट जिनालय है जिसमें - अनेकान्त वर्ष २३ कि० ५-६ पृ० २३४