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________________ तेरहवीं और चौदहवीं शताब्दी के आचार्य, विद्वान और कवि हिजरी सन् ५७२ सन् ११९६ (वि० सं० १२५३ ) में मुईजुद्दीन मुहम्मद गौरी ने कुमारपाल पर आक्रमण कर उसे परास्त किया, और तिहवनगिरी का दुर्ग वहारुद्दीन तुघरिल को सौप दिया । उस समय तिहवन गिरि नष्ट भ्रष्ट हो गया था और वहां से हिन्दू और जैन परिवार इधर-उधर भाग गये थे। नगर बीरान हो गया था। दि दिनयचन्द्र ने णिज्झर पंचमी कहारास, की रचना तिहुवण गरि की तलहटी में की थो,' और चुनड़ी की रचना का स्थल अजयपाल नरेन्द्रकृत विहार को बतलाया है। चूनड़ी की रचना से पूर्व उदयनन्द्र मुनि हो गये थे। उसका उल्लेख, माथुर संधहि उदय भुणीसरु, वाक्य में किया है। सुगंधदशमो कथा उनके गृही जीवन को रचना है। इस सब कयन से सुनिश्चित है कि सुगन्ध दशमी की कथा का रचना काल सन् १०५० (वि० सं० १२०७) है। पण्डित महावीर यह वादिराज पंण्डित घरसेन के शिष्य थे। धारा नगरी के निवासी थे । न्याय शास्त्र, व्याकरण शास्त्र और धर्मशास्त्र के विद्वान थे। सन् ११९२ (वि०सं० १२४६) में जब शहाबुद्दीन गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को हराकर दिल्ली और अजमेर पर अधिकार कर लिया था, तब सदाचार के विनाश के भय से आशाधर जो बहुत से परिजनों और परिवार के लोगों के साथ दिन्ध्यवर्भा राजा के मालवमण्डल धारा नगरी में प्रा वसे थे। उस समय पाशाधर जो संभवतः किशोर ही होगे । उन्होंने उक्त पंण्डित महावीर से प्रमाण शास्त्र और व्याकरण का अध्ययन किया था। इससे इनका समय विक्रम की तेरहवीं शताब्दी का मध्य काल है। कषि लाखु या लक्ष्मण कवि लक्ष्मण का कुल यादव या जायस है। जो प्रसिद्ध यदुवंश का विकृत रूप है । यह प्रसिद्ध क्षत्रिय कुल है । कवि के प्रपिता का नाम कोसवाल था, जिनका यश दिकचक्र में व्याप्त था। उनके सात पुत्र थे-अल्हण, गाहल, साहुल, सोहण, मइल्ल, रतन और मदन । ये सातों ही पूत्र कामदेव के समान सुन्दर रूप वाले और महामति थे। इन में प्रस्तुत कवि के पिता साहल श्रेष्ठी थे। ये सातों भाई और कवि लक्ष्मण अपने परिवार के साथ पहले त्रिभवनगिरि या तहनगढ़ के निवासी थे। उस समय त्रिभवनगिरि जन-धन से समृद्ध तथा वैभव से युक्त था। परन्तु कुछ समय बाद त्रिभुवनगिरि की समृद्धि विनष्ट हो गई यो-उसे म्लेच्छाधिप मुइजुद्दीन मुहम्मद गोरी ने बल पूर्वक घेरा १. तिहुयरणगिरि तलहट्टी इहु राम रइउ,-माथुरसंघहं मुरिंगवर विरण्यचंदि कहिउ । २.तियणगिरि जगि विक्खायउ, सागखर णं घरपलि आयज । तहि शिवसते मुनिवरें अजयणग्दिहों राजविहारहि ।। वेगें विरइय चुनडिय सोहह मुरिणवर जे सुयधारहिं ।। चूनही प्रशस्ति ३. म्लेच्छेशेन सपादलक्षविषये व्याप्ते मुदस क्षति त्रासाद्विन्ध्य नरेण्दोः परिमलस्फूर्जस्त्रिवर्मोजसि । प्राप्तो मालय मण्डले बहुपरीवारः पुरीमावसन, । यो धारामपज्जिनप्रमितिवारशास्त्र महावीरतः ।।५।। अनगारधर्मामृत प्रशस्ति ४. यदुकुल प्रसिद्ध क्षत्रिय कुल है। यदुकुल ही यादव और बिगड़कर जायव या जायस बन गया है। इस कुल का राज्य शूरसेन देश में था। शौरीपुर, मधुरा और भरतपुर में यदुवंशियों का राम्य रहा है। श्रीकृष्ण और नेमिनाथ तीर्थकर का जन्म इसी कुल में हुआ था । यह क्षत्रिय वंश वर्तमान में वैश्य कुल में परिवर्तित हो गया है।
SR No.090193
Book TitleJain Dharma ka Prachin Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size19 MB
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