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व्याखवीं और बारहवीं शताब्दी के विद्वान, आचार्य
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देवकीति का स्वर्गवास शक सं० १०८५ सन् १९६३ सुभानुसंवत्सर आषाढ शुक्ला नवमी बुधवार को सूर्योदय के समय हुआ था । इनका समर सन् १०४० से १९६: ई. ! ति राईसा की १२वों शताब्दी के विद्वान हैं । यादव वंशी नरेश नरसिंह प्रथम के मंत्री हुस्लप ने निषद्या बनवाई, और देवकीर्ति के शिप्य लक्खनन्दि और माधवचन्द्र ने प्रतिष्ठित की।
गण्ड विमुक्त सिद्धान्तदेव यह मूलसंघ कुन्दकुन्दान्वय देशीगण पुस्तक गच्छ के कोल्हापुरीय माघनन्दि सैद्धान्तिक के शिष्य थे। बड़े विद्वान थे। शक सं० १०५२ (सन् ११३० ई०) में माघनन्दि के शिष्य गण्ड विमुक्त सिद्धान्तदेव को होयसल नरेश विष्णुबर्द्धन की पुत्री एवं बल्लाल देव की बडी बहिन राजकुमारी हरियव्वरसि ने एक रत्न जटित जिनालय बनवाकर स्वगुरु को प्रदान किया था । और सन् ११३८ में इन्हीं गण्ड विमुक्तदेव बनीश को दान दिये जाने का उल्लेख है।३। इनके पट्टधर शिष्य देवकीति थे, और अन्य शिष्य शुभनन्दी थे । देवकीति का समाधिमरण सन् १९६३ ई. में हुमा था 3 | इनका समय सन् ११३५ से ११४५ ई. तक है।
माणिक्यनन्दी यह मूलसंघ कुन्दकुन्दान्बय देशी गण पुस्तक गच्छ के विद्वान माघनन्दि सैद्धान्तिक के शिष्य थे।
क्षल्लकपूर (कोल्हापुर के शिलाहार नरेश विजयादित्य ने सन् १९४३ में माधनन्दि के गहस्थ शिप्य द्वारा निर्मापित जिनालय के लिये उनके शिष्य माणिक्यनन्दी को दान दिया था १४ । यह भी बड़े विज्ञान और तपस्वी थे। इनका समय ईसा की१२वीं शताब्दी का मध्यभाग है।
माधवचन्द्र मलधारी यह भट्टारक अमृत चन्द्र के गुरु थे । और जो प्रत्यक्ष में धर्म, उपशम, दम, क्षमा के धारक, तथा इन्द्रिय और कषायों के विजेता थे' । इनकी प्रसिद्धि 'मलघारी' नाम से थी। मलधारी एक उपाधि थी जो उस समय किसी-किसी साधु सम्प्रदाय में प्रचलित थी। यह उपाधि दुर्धर परीषहों, विविध उपसर्गों, और शीतउष्ण तथा वष की बाधा सहते हुए भी कष्ट का अनुभव नहीं करते थे। पसीने सेतर बतर शरीर होने पर धुलि के कणों के संसर्ग से मल्लिन शरीर को पानी से धोने या नहाने जैसी घोर बाधा को भी हंसते हंसते सह लेते थे। ऐसे ऋषि पुंगव ही उक्त उपाधि से अलंकृत किये जाते थे।
इनका समय विक्रम की १२वीं शताब्दी का उत्तरार्ध जान पड़ता है। क्योंकि इनके शिष्य अमृतचन्द्र कवि सिंह के गुरु थे। कवि सिंह ने सिद्ध कवि के प्रपूर्ण खण्ड-काव्य पज्जुण चरिज की प्रशस्ति में बम्हणवाड नगर का वर्णन किया है। उस समय वहां रणधारी या रणधीर का पुत्र बल्लाल था जोपर्णोराज का क्षय करने के लिए काल स्वरूप था क्योंकि वह उसका वैरी था। जिसका मांडलिक भृत्य या सामन्त गुहिल वंशीय क्षत्रीय भुल्लण बम्हणवाद्ध का शासक था।
१० बैन लेख सं०भा० १ ले.नं. ३९ (६३) पृ. ११ जैन लेख सं० भाग २ ले ने० २९३ पृ०४४५ १२ जैन लेख सं०भा० ३ ००३०७ पृ० २१ १३ जन लेख सं. मा० १ ले० नं. ३६० २१ १४ जैन लेख सं०भा० ३०० ३२० पु. ५३ १ ता मलपारि देव मुणि प्रगम, रणं पच्चक्ख भामु उपसमुदमु।' माहरचंद आसि सुपसिबउ, जो खम, दम गम-णियम समिदउ ।
-पज्जुण्ण परिउ प्रशस्ति