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________________ ३२९ ग्यारहवीं और बारहवीं शताब्दी के विद्वान, आचार्य पद्मप्रभ मलधारीदेव पप्रप्रभ मलधारीदेव-मूलसंघ कुन्दकुन्दान्वय पुस्तकगच्छ और देशीगण के विद्वान वीरनन्दी व्रतीन्द्र के शिष्य थे । इनकी उपाधि मलधारी थी, यह उपाधि अनेक विद्वान आचार्यों के साथ लगी देखी जाती है। इनकी बनाई हुई पाचर्य कुन्दकुन्द के नियमसार की एक संस्कृत टीका है जिसका नाम 'तात्पर्यवृत्ति' है, वत्तिकार ने वत्ति की पुष्पिका' में अपने लिये तीन विशेषणों का प्रयोग किया है---'सुकविजनपयोजमित्र' 'पंचेन्द्रियप्रसारवजित' और मात्रमात्रपरिग्रह' । इन तीन विशेषणों से ज्ञात होता है कि पद्मप्रभ सुकविजन रूप कमलों को विकसित करने वाले मित्र (सूर्य) थे। और पंचेन्द्रियों के प्रसार से रहित थे-जितेन्द्रिय थे। तथा शरीरमात्र परिग्रह के धारी थेनग्न दिगम्बर थे। अच्छे विद्वान और कवि थे। इन्होंने समयसार के टीकाकार प्राचार्य प्रमतचन्द्र की तरह नियम सार की तात्पर्यवृत्ति में भी अनेक सुन्दर पद्य बनाकर उपसंहार रूप में यत्र-तत्र दिये हैं। पप्रभ ने बत्ति में यथा स्थान अनेक विद्वानों और उनके अन्थों के पद्यों को ग्रन्थ कर्ता का नाम लेकर या के किये हैं। उनमें समन्तभद्र, सिद्धसेन, पूज्यपाद, अमृतचन्द्र, सोमदेव, गुणभद्र, वादिराज, योगीन्द्रदेव और चन्द्रकीति तथा महासेन का नामोल्लेख किया है। समयसार कलश, मार्गप्रकाश. प्रमताशीति एकत्व सप्तति, और श्रुतविन्दु नामक ग्रन्थों का उल्लेख किया है। इनके अतिरिक्त वृत्तिकार ने 'तथा चोक्तम् महासेन पंडितदेवः, वाक्य के साथ निम्न पस किया है। ज्ञानाद्धिम्लोन चाभिन्नो भिन्नाभिन्नः कथंचन । ज्ञानं पूर्वापरीसूतं सोऽयमात्मेति कीर्तितः ॥ इसके पश्चात उक्तं च षण्णवतिपापंडिविजयोपाजितविशालकीति महासेन पंडित देवः वाक्य के साथ उक्त किया है: मानमिर्गीहिः हामजानं प्रदीपयत् । . तत्स्वार्थव्यवसायात्मा कथंचित् प्रमितेः पृथक् ॥" ये दोनों ही पद्य 'स्वरूप सम्बोधन' नामक ग्रंथ के हैं, जिसके कर्ता प्राचार्य महासेन हैं। टीकाकार समसार वे चानवे वादियों के विजेता थे। और लोक में उनकी विशाल फोति फैल रही थी। इनकी गह परम्परा और गण-गच्छादि क्या हैं, यह कुछ ज्ञात नहीं होता। डा. ए०एन० उपाध्ये ने स्वरूप सम्बोधन केकी सम्बध में लिखा है कि वे नयसेन के शिष्य थे। थिय: पति केवल बोधलोचन, प्रणम्य प्रमप्रभ योध कारणं। करोमि कर्णाटगिरा प्रकाशन, स्वरूपसंबोधन पंचविशीं ॥ "श्रीमन्मयसेनपंडित देवरु शिष्यरप्पधीमन्महासेनदेवरुभव्यसार्थसंबोधनार्थ मार्ग स्वरूप संबोधन पंच विशति व ग्रंथमं माइत्तमा ग्रन्थद मादेलोल इष्ट देवता नमस्कार में म्यडिद पर" । महासेन नामके और भी विद्वान हए हैं। एक तो लाड बागड गण के महासेन जो प्रद्युम्नचरित के कर्ता हैं। जो संवत् १०५० के लगभग हए हैं जो १. तद्विद्याढ्यं वीरनन्धि व्रतीन्द्रम् २. मलधारी विशेषण दिगम्बर वेताम्बर दोनों ही सम्प्रदायों के मुनियों के साथ संलग्न देखा जाता है। बारीर के स्वच्छता के विपरीत मल परीषह की सहन-शीलता का शोलक है। मलधारी गण्ड चिमुक्त देव, मलघारी माश्वचन्द्र मलधारी बालचन्द्र, मलधारि मल्लिषेण, मलधारिदेव, आदि दिगम्बर, मलधारी हेमचन्द्र, मलयारि अभयदेव, मलपारि जिनभद्र आदि श्वेताम्बर । १. 'इति सुकविजनपयोजमित्र पंचेन्द्रिवप्रसरवजित गात्रमात्रपरिग्रह श्री पचप्रमालपारि देव विरचितायां नियमसार व्याल्यायो तात्पर्यवत्ती शुद्ध निश्चियप्रायश्चित्साधिकारोऽष्टमः श्रुतस्कन्धः ?
SR No.090193
Book TitleJain Dharma ka Prachin Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size19 MB
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