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________________ नवमी दसवीं शताब्दी के आचार्य २२५ भारवि के किरातार्जुनीय से प्रायः मिलती-जुलती है । रचना सुन्दर तथा पठनीय है । ग्रन्थ का अाधुनिक सम्पादित संस्करण प्रकाशित होना जरूरी है। दूसरी रचना शान्तिनाथ चरित है जिसमें सोलहीका किनारका जीवन-परिचय प्रकित किया गया है। यह ग्रन्थ सोलह सों में विभक्त है। यह ग्रन्थ वर्धमान चरित के वाद बनाया गया है। इस ग्रन्थ पर एक संस्कृत टिप्पणी भी उपलब्ध है। परन्तु मूल और टिप्पण दोनों ही अभी तक अप्रकाशित हैं। शेष ग्रन्थों का अन्वेषण होना चाहिए। विमलचन्द्र मुनीन्द्र विमलचन्द्र मुनीन्द्र-महापण्डित, गुरुओं के गुरु और वादियों का मद भजन करने वाले थे। चणि में उनके द्वारा राजा शत्रु भयंकर के सभा द्वार पर लगाये गये वादपत्र चेलज के श्लोक निम्न प्रकार हैं: पत्रं शत्रु-भर्यरोह-भवन-द्वारे सदासञ्चरन्नाना-राज-करीन्द्र-वृन्द-तुरग-वाताकुले स्थापितम। शंवापाशुपतास्तथागतसुतात्कापालिकान्कापिला नृद्दिश्योद्धत-चेतसा विमलबन्द्राशाम्बरेणादरात् ॥२६ इनका समय संभवत: विक्रम की १०वी का उत्तरार्ध और ग्यारहवीं का पूर्वार्ध सुनिश्चित है। महामुनि वऋग्रीव यह बड़े भारी विद्वान थे। यह किसी बाद में छहमास पर्यन्त केवल 'प्रथ' शब्द की व्याख्या करते रहे। इससे उनकी विद्वत्ता एक सहज ही अनुभव हो जाता है। जैसा कि महिलषेण प्रशस्ति के निम्न पच से स्पष्ट है : बक्रग्रीव-महामुने-ईवा-शत-ग्रीयोऽप्यहीन्द्रो यथाजातं स्तोतुमलं वचोबलमसौ कि भग्न-वाग्मि-जं । योऽसौ शासन-देवता-बहमतोही-वक्त्र-बावि-ग्रह ग्रोवोऽस्मिन्नय-शाम्ब-वाच्य मवदद मासान्समासेन षट् ॥१० चंकि मल्लिषेण प्रशस्ति-उत्कीर्ण होने का समय शक सं० १०५० सन् ११२८ ई० है। वक्ग्रीव मुनि उससे पूर्व हए हैं। अत: इनका समय संभवतः ईसा को दसवीं-ग्यारहवीं सदी हो सकता है । हेलाचार्य हेलाचार्य-यह द्रविड संघ के अधिपति और द्रविडगण के मुनियों में मुख्य थे। और जिन मार्ग की क्रियाओं का विधिपूर्वक पालन करते थे। पंच महावत पंच समिति और तीन गुप्तियों से संरक्षित थे-उनका विधि पूर्वक आचरण करते थे। यह मलयदेश में स्थित 'हेम' ग्राम के निवासी थे। एक बार उनकी शिष्या कमलधी को. जो समस्त शास्त्रज्ञ और ध्रुत देवी के समान विदुषी थी। उसे कर्मवश ब्रह्म राक्षस लग गया। उसकी पीड़ा ---- - - - - - - - - - १. विमलचन्द्र-मुनीन्द्रनगुरोगुरु प्रशमिताखिल वादिमदं पदं । यदि यथावदवप्यत पण्डितन्नदान्वयवदिष्यल वाविभोः ।।२५ २. द्रविडगरण समयमुख्यो जिनपति मार्गोपपितक्रियापूर्ण: । श्रत्त समितिगुप्तिगुप्तो हेलाचार्यो मुनिर्जयति ।। १६ -(ज्वालामालिनी कल्प प्रशस्ति) ३. दक्षिणदेशे मलये हेम ग्रामे मुनि महात्मासीत् । हेलाचार्योनाम्ना दविडमणाधीदवरो धीमान् ।। तच्छुिप्या कमलथीः श्रुतदेवी वा समस्त शास्त्रज्ञा। सा ब्रह्मराक्षसेन गृहिता रौद्रेण कमवशात् ।। . - (ज्वालामालिनी कल्प प्रशस्ति ।।५।६।
SR No.090193
Book TitleJain Dharma ka Prachin Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size19 MB
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