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नवमी-दशवीं शताब्दी के आचार्य
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प्रकारावि हकारान्ता मंत्राः परमशरूयः ।
स्वमंडलगताः ध्येया लोकद्वयफलप्रदाः। धर्म रत्नाकर का रचना काल सं० १०५५ हैं । अतः तत्त्वानुशासन इससे पूर्ववर्ती रचना है:प्राचार्य अमितजस द्वितीय : उपासमार एक पर निम्न प्रकार पाया जाता है:
अभ्यस्यमानं बहधास्थिरत्वं यथेसि र्बोध मयीह शास्त्रम् । शान तथा ध्यान मपीतिमत्वा ध्यानं सदाभ्यस्तु मोक्तु कामः ॥
उपासकाचार १०-१११ ध्यान विषय की प्रेरणा करने वाला यह पद्य तत्त्वानुशासन के निम्न पद्य से प्रभावित तथा अनुसरण को लिये हुए है:
यथाभ्यासेन शास्त्राणि स्थिराणि स्यमहान्त्यपि ।
तथा ध्यानमपि स्थय लभतेऽम्यास सिनाम् ॥१८ इन अमितगति द्वितीय के दादा गुरु अमितगति ( प्रथम ) द्वारा रचित योगसार प्राभूत १६ वें अधिकार में एक पद्य निम्न प्रकार से उपलब्ध होता है।
येन येनैव भावेन युज्यते यंत्रवाहकः।
तम्मयस्तत्रतत्रापि विश्वरुपो मणियथा ॥५१ यह पद्य तत्त्वानुशासन के १६१ पद्य के साथ सादृश्य रखता है:
येन भावेन यत्रूपं ध्यायत्यास्मान मात्मवित् ।
तेन तन्मयतां याति लोपाधिः स्फटिको यथा ॥१६॥ अमितगति प्रथम का समय विक्रम की ११वीं शताब्दी का प्रथम धरण है। द्रव्य संग्रह के टीकाकार ब्रह्मदेव ने तत्वानुशासन से (८३-८४) ये दो पद्य ग्रन्थ के नामोल्लेख के साथ उद्धृत किये हैं। ब्रह्मदेव का समय विक्रम की ११वीं शताब्दी का अन्तिम चरण और १२वों का पूर्वार्ध है। इससे स्पष्ट है कि रामसेन अमितगति प्रथम और ब्रह्मदेव ११ वीं शताब्दी से पूर्ववर्ती हैं।
तत्त्वानुशासन पर आचार्य प्रमतचन्द्र के ग्रन्थों का साहित्यिक अनुसरण एवं प्रभाव परिलक्षित है। तत्त्वार्थसार के ७ ३ वें पद्यों का तत्त्वानुशासन के ४-५ पद्यों पर स्पष्ट प्रभाव है और साहित्यिक अनुसरण है। इससे तरवानुशासन की रचना अमृतचन्द्राचार्य के बाद हुई है। सप्त तत्त्वों में हेयोपादेय का विभाग करने वाले वे पद्य इस प्रकार हैं:--
उपादेय तया जीवोऽ जीवोहेयतयोदितः । हेयस्यास्मिन्नुपावान हेतुत्त्वेनाइवः स्मृतः ।।७ संवरो निर्जरा हेय-हान-हेतु-तयोवितौ। हेय-प्रहाणलोण मोक्षो जीवस्य दशितः ॥ तत्त्वार्थसार बन्धो निवन्धनं चास्य हेयमित्युपदशितम् । हेयस्याउ शेष दुःखस्य यस्माद् बीजमिवं द्वयम् ।।४ मोक्षस्तत्कारणं चैतदुपादेय मुवाहतम् ।
उपादेयं सुखं यस्मावस्मादाविर्भविष्यति ॥ तत्वानुशासन । निश्चय और व्यवहार के भेद से मोक्षमार्ग के दो भेदों का प्ररूपक तथा उनमें साध्य-साध्यनता-विषयक पद्य भी साहित्यिक अनुसरण को लिये हुए पाया जाता है।
१. बाणेन्द्रिय ब्योम सोम-मिते संवत्सरे शुभे । ( १०५५)
अन्थोऽयं सिद्धतां मातिः सबलीकरहाटके ।। --धर्मरत्नाकर प्रस