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________________ २०८ जैन धर्म का प्राचीन इतिहास भाग२ सेन का नामोल्लेख किया है नागसेन नाम के भी कई विद्वान प्राचार्य हो गये हैं।' उन सब में वे नागसेन चामुण्डराय के साक्षात् गुरु अजितसेन के प्रगुरु थे। अर्थात् अजितसेन के गुरु आर्य सेन (मार्यनन्दी) के गुरु थे। और जिनका चामुण्डराय पुराण में प्राचार्य कुमारसेन के बाद उल्लेख है। चामुण्डराय ने अपने पुराण का निर्माण शक स० ६.०० (वि० सं० १०३५) में किया है। अतएव नागसेन का समय वि० सं० १००० से कुछ पहले का समझना चाहिए २ यह भागसेन रामसेन के दीक्षा गुरु हो सकते हैं। अन्य नागसेन नहीं। प्रस्तुत रामसेन काष्ठा संघ नन्दीतटगच्छ और विद्यागण के प्राचार्य थे। क्योंकि नन्दीतटगच्छ की गुर्दावली में उन्हें 'प्रतिबोधन पण्डित बतलाया है। नरसिंह पुरा जाति के संस्थापक भी थे । अपने समय के प्रसिद्ध विद्वान तपस्वी प्राचार्य रहे हैं। रामसेन ने प्रशस्ति में अपने चार विद्या गुरुयों के नामों का उल्लेख किया है "श्री वीरचन्द्र-शुभदेवमहेन्द्रदेवाः-शास्त्राय यस्य गुरवो विजयामरवच" धीरचन्द्र, शुभदेव, महेन्द्रदेव प्रौर विजयदेव । पर इनका अन्य परिचय कहीं से भी उपलब्ध नहीं होता 1 हां, महेन्द्र- देव का परिचय अवश्य प्राप्त होता है। ये महेन्द्रदेव वही ज्ञात होते हैं जो ने मिदेव के शिष्य और सोमदेव के बड़े गुरुभाई थे। नेमिदेव के बहुत से शिष्य थे, उनमें से एक शतक शिष्यों के अवरज (अनुज) और एक शतक के पूर्वज सोमदेव थे। ऐसा परभनी के ताम्र शासन (दान पत्र) से जान पड़ता है। इनमें महेन्द्रदेव प्रमख विद्वान थे। उन्हें नीतिवाक्यामृत की प्रशस्ति में 'वादीन्द्रकालानल श्रीमन्महेन्द्र १. नागसेन नाम के ५ विद्वानों का उल्लेख मिलता है-१ वे नागसेन जो दशपूर्व के पाठी थे और जिनका समय विक्रम सं० से २५० वर्ष पूर्व हैं। २रे वे नागसेन जो ऋषभसेन के गुरु के शिष्य थे, जिन्होंने सन्यास विधि से श्रवण बेल्गोल के शिलालेख नं० (१४) ३४ के अनुसार देवलोक प्राप्त किया था शिलालेख में विशेषणों के साथ उनकी स्तुति की गई है। शिलालेख का समय शक सं०६२२ (वि० सं० ७५७) के लगभग अनुमान किया गया है, पर उसका कोई आधार नहीं बतलाया। देरे नागसेन वे हैं जो चामुण्डराय के साक्षात् गुरु अजितसेन के प्रगुरु अर्थात् अजितसेन के गुरु आर्य सेन (आर्य नन्दी) के गुरु ये। जिनका चामुण्डराय पुराण में आचार्य कुमारसेन के बाद उल्लेख किया गया है। चामुण्डराय पुराण का निर्माण शक सं० १०० सन् १७८ (वि सं० १०३५) में हुआ है। इससे यह नागसेन १० वीं पाताब्दी के विद्वान जान पड़ते हैं । नागसेन वे है जिन्हें राणी अकादेवी ने गोदगि जिनालय के लिए सन् १०४७ (वि० सं० ११०४) में भूमिदान दिया था । यह मूलसंघसेनगण तथा हेगरि (पोगरि) गच्छ के विद्वान आचार्य थे। (देखो, जैनिज्म इन साउथ इंडिया पृ० १०६) वें नागसेन वे है, जो मन्दीतट गच्छ की गुर्वावलि के अनुसार गंगसेन के उत्तरवर्ती और सिद्धान्तसेन तथा गोपसेन के पूर्ववर्ती हुए हैं। जिनका समय १०वीं शताब्दी का मध्य जान पड़ता है। २. देखो, पी. बी. देसाई का जैनिज्म इन साउथ इडिया पृ० १३४-३७ ३. रामसेनोऽतिविचितः प्रतिबोधन पंडितः । स्थापिता येन संज्जाति रसिंहाभिधा भुवि ।।२४॥ -गुर्वावली काष्ठासंघ नंदीतरगच्छ अनेकान्त वर्ष १५. किरण ५ ४. श्री गौड़ संचे मुनिमान्यकीर्तिन्नाम्ना यशोदेव इति प्रजज्ञे । बभूव मस्योग्र तपःप्रभावात्समागमः शासनदेवताभिः ॥१५ शिष्योऽभवत्तस्य महडिभाजः स्यावादरनाकर पारवृक्षवा । श्री नेमिदेवः परवादि दर्पद्रुमावलीच्छेद-कुठारनेमिः ॥१६ तस्मासपः धियोभत्तुल्लोकानां हृदयंगमाः । बभूवुः बहवः शिष्या रत्नानीव तदाकरात् ।।१७ तेषां शतस्यावरजः शतस्य तथा भवत्पूर्वज एव धीमान् । श्री सोमदेवस्तपसः श्रुतस्य स्थानं यशोधाम गुणोजितश्रीः॥१०॥
SR No.090193
Book TitleJain Dharma ka Prachin Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size19 MB
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