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________________ नवमी-दशवीं शताब्दी आचार्य शक सं०७२ सन् ८६० के ताम्रपत्र से ज्ञाता है कि अमोध वर्ष प्रथम ने अपने राज्य के ५२वें वर्ष में मान्य खेट में जैनाचार्य देवेन्द्र को दान दिया था। अमोघवर्ष ने यह दान अपने अधीनस्थ राज कर्म चारी बडूय को महत्यपूर्व सेवा के उपलक्ष्य में कोलनर में बडूय द्वारा स्थापित जिनमन्दिर के लिये देवेन्द्र मुनि को सलेयूर नाम का पुरा गांव और दूसरे गावों की कुछ जमीन प्रदान की थी। यह दान शक सं०७८२ (सन् ८६०- वि० सं० ६१७) में दिया गया था। इससे देवेन्द्र सैद्धान्तिक का समय ईसा की नवमी और विक्रम की दशमी शताब्दी का पूर्वार्ध है। इनके शिष्य कलधौतनन्दी थे। जिनका परिचय नीचे दिया गया है। कलपोतनन्दि कसौतनन्दि मलसंघ देशीय गण पुस्तक गच्छ के विद्वान गुणनन्दि के प्रशिष्य और देवेन्द्र सैद्धान्तिक के शिष्य थे। बडे भारी सैद्धान्तिक और पंचाक्षरूप उन्नत गज' के कं भस्थल को फाड़कर मुक्ताफल प्राप्त करने वाले केशरी सिंह थे। विद्वानों के द्वारा स्तूत और वाक्य रूपी कामिनी के वल्लभ थे। चं कि देवेन्द्र सैद्धान्तिक को राष्ट्रकूट राजा अमोध वर्ष प्रथम ने बडूय द्वारा स्थापित जिनालय के लिये 'कोलनर' में 'तलेयूर' नामका ग्राम और दूसरे ग्रामों की कुछ जमीनं प्रदान की थीं। यह लेख शक सं०७२ सन - वि.सं. १९७) का लिया इया है। अत: कलधौतनन्दि का समय भी ईसा को नवमी (वि. की १०) शताब्दी हो सकता है। (जैन लेख स० भा० २ पृ० १४१) वृषमनन्दी सिषण सैद्धान्तिक मुनि का उल्लेख प्रायश्चित्तके एक संस्कृत ग्रंथ जीतसारसमुच्चय, को प्रशस्ति में किया गया है। इन्हें मान्यखेट में मंजूषा में कुन्दकुन्दाचार्य 'नामांकित' जीतोपदेशिका' नाम का अन्य प्राप्त हुमा था। और जो संभरी स्थान में चले गये थे। उन्हीं मुनिराज ने उसकी व्याख्या वृषभनन्दी को की थी तब वृषभनन्दी, जो नन्दनन्दी के शिष्य, और रूक्षाचार्य के प्रशिष्य थे । जीतसार समुच्चय ग्रन्थ की रचना संस्कृत पद्यों में की थी। पौर हर्षनन्दी ने सुन्दर अक्षरों में लिखा था । वृषभनन्दी का यह ग्रन्थ महत्वपूर्ण है, इसमें प्रायश्चिन्त का कथन किया गया है। इसका प्रकाशन होना चाहिये। यह अजमेर के भट्टारकीय शास्त्र भण्डार में मौजूद है। इससे इनका समय नवमी शताब्दी जान पड़ता है। तच्छिष्यः कलधौतनन्दिमुनिपस्सद्धान्तचक्रेश्वरः, पारावारपरीतधारिणि कुलब्याप्तोरुकीतीश्वरः । पश्चाक्षोम्मदकुम्भिदलन प्रोन्मुक्त मुक्ता फलप्रांशु प्राञ्चित केसरी बुधनुतो वाक्कामिनी बल्लभः ।।१० -जैन लेख सं० भा० १ पृ. ७२ २. मान्याखेटे मंजूषेक्षी सैद्धान्तः सिद्धभूषणः । सुजीर्णा पुस्तिका जैनी प्राप्यि संभरी गतः ॥३४ श्री कोंड कुन्दनामांका जीतोपदेशदीपिका । ब्याख्याता मदहितार्थन मयाप्युक्ता यथार्थतः ।। ३५ सद्गुरोः सदुपीन कुता बृषभनन्दिना । जीतादिसार संक्षेपो नंद्याचा चंदुतारकं ३६ ३. देखो, अनेकान्तवर्ष १४ कि० १ ० २७ में पुराने साहित्य की खोज लेख ।
SR No.090193
Book TitleJain Dharma ka Prachin Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size19 MB
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