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________________ नवमी-दशवों शताथ्दी के प्राचार्य उत्तर भारत की ओर आया होगा। और गिरिनार क्षेत्र के नमिजिन की वन्दना के निमित्त सोराष्ट्र (काठियावाड़) में गया होगा। जिनसेन ने गिननान की सिंहवाहिना या अन्या देवी का उलोख किया है और उसे विनों को नाश करने वाली बतलाया है। प्रशस्तिगत वर्द्धमानपुर के चारों दिशाओं ने राजायों का वर्णन निम्न प्रकार : इंद्रायुध स्व. हीराचन्द्र जी ओका ने लिखा है कि इन्द्रायुध और चन्द्रायुध किस वंश के थे, यह ज्ञात नहीं हुमा । परन्तु संभव है वे राठोड़ हों। स्व. चिन्तामणि विनायक वंद्य के अनुसार इन्द्रायुध भण्डिकुल का था और उक्तवंश को वर्म वंश भी कहते थे। इसके पुत्र चक्रायुध को परास्त कर प्रतिहार वंशी राजा वत्सराज के पुत्र नागभट द्वितीय ने जिसका कि राज्य काल विन्सेन्ट स्मिथ के अनुसार वि० सं०८५७-८८२ है । कन्नौज का साम्राज्य उससे छीना था। बढाण के उत्तर में मारवाड़ का प्रदेश पड़ता है-इससे स्पष्ट है कि कन्नौज से लेकर मारवाड़ तक इन्द्रायुध का राज्य फैला हुआ था । श्रीवल्लम दक्षिण के राष्ट्रकूट वंश के राजा कृष्ण (प्रथम) का पुत्र था। इसका प्रसिद्ध नाम गोविन्द (द्वितीय) था। कावी में मिले हुए ताम्रपट में इसे गोविन्द न लिखकर दस्लम ही लिखा है, अताब इस विषय में सन्देह नहीं रहा कि यह गोविन्द द्वितीय) ही था और बधमानपुर की दक्षिण दिशा में उसी का राज्य था। कावी भी बढवाण के प्रायः दक्षण में है। शक स० ६७२ (वि० सं०८२७) का उसका एक ताम्रपत्र मिला है। अवस्तिभूभृत् वत्सराज यह प्रतिहार वंश का राजा था और उस नागावलोक या नागभट (द्वितीय) का पिता था। जिसने चक्रायुध को परास्त किया था। वत्सराज ने गौड़ और बंगाल के राजानों को जीता था और उनसे दो श्वेतछत्र छीन लिए,थे । आगे इन्ही छत्रों को राष्ट्रकूट गोबिन्द (द्वितीय) या श्रीवल्लभ के भाई ध्रुवराज ने चढ़ाई करके उससे छीन लिया था। और उसे मारवाड़ की प्रगम्य रेतीली भूमि की प्रोर भागने को विवश किया था। मोझा जी ने लिखा है कि उक्त वत्सराज ने मालवा के राजा पर चढ़ाई की पौर मालव राज को बचाने के लिए ध्रुवराज उस पर चढ़ दौड़ा। शक सं०७०५ में तो भालवा वत्सराज के ही अधिकार में था क्यों कि ध्रुवराज का राज्यारोहण काल शक सं०७०७ के लगभग अनुमान किया गया है। उसके पहले ७०५ में तो गोविन्द (द्वितीय) श्री बल्लभ ही राजा था और इसलिये उसके बाद ही ध्रुवराज की उक्त चढ़ाई हुई होगी। उद्योतन सुरि ने अपनी कुवलय माला जाबालिपुर (जालोर मारवाड़) में तब समाप्त की थी जब शक सं०७०० के समाप्त होने में एक दिन बाकी था। उस समय वहां वत्सराज का राज्य या' अर्थात् हरिवंश को रचना १. गहीत चक्रा प्रतिचक्र देवता तयोर्जयन्ताल य सिंह बाहिनी । शिवाय पस्मिन्तिह सन्तिधीमते क्वातन्त्र विघ्नाः प्रभवन्ति शावते ।। ४ २. देखो, सी. पी. वैद्य का हिन्दूभारत का उत्कर्ष' पू. १७५ ३. म०मि. ओझा जी के अनुसार नागभट का समय वि० सं० ८७२ ८६० तक है। ४. इण्डियन एण्टिक्वेरी: जिल्द ५ पु० १४६ । ५. एपिग्राफिया इण्डिकाः जिल्द ६, पृ० २७६ । १. सग काले बोलीणे परिसारण सरहिं सत्तहिं गएहि । एक दिणेणणेहि रझ्या अबरण्ड वेलाए । परभद्रभिउडी भंगो पणईपण रोहिणी कला चंद्रो। सिरिवच्छ रावणामो परहत्यी पस्थिवो जहमा ।।
SR No.090193
Book TitleJain Dharma ka Prachin Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size19 MB
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