SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 179
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विजयदेव पंडिताचार्य विजयदेव पण्डिताचार्य मूलसंधान्बय देवगण के विद्वान रामदेवाचार्य के प्रशिष्य और जयदेव पंडित के शिष्य थे । इन्हें पश्चिमी चालुक्य विक्रमादित्य द्वितीय ने शक सं० ६५६ (वि० सं०७६१) में द्वितीय विजय राज्य संवत्सर में माघ पूर्णिमा के दिन पूलिकनगर के शंखतीर्थवस्ति के तथा धवल जिनालय का जीर्णेद्धार करने और जिनपूजा वृद्धि के लिये दान दिया। देखो, जन लेख सं० भा० २ १० १०४ महासेन-(सुलोचना फया के वर्ता) सुलोचना कथा के कर्ता महासेन का कोई परिचय उपलब्ध नहीं है। और न उनकी पावन कृति सलोचना नाम की कथा ही उपलब्ध है। हरिवंश पुराणकार (शक सं०७०५) ने ग्रन्थ की उत्थानिका में महासेन की सलोचना कथा का उल्लेख किया है, और बतलाया है कि 'शीलरूप प्रलंकार धारण करने वाली, सुनेत्रा और मधुरा वनिता के समान महासेन की सुलोचना-कथा की प्रशंसा कसने नहीं की। महासेनस्य मधुरा शीलालंकारधारिणी। कथा न वणिता केन बनितेव सुलोचना ।। कुवलय माला के कर्ता उद्योतन सूरि (शक सं०७००) ने भी सुलोचना कथा का निम्न शब्दों में उल्लेख किया है: सणिहिव जिणवरिया धम्मकहावविक्षम रवा। कहिया जेण सु कहिया सुलोयणा समवसरणं व ॥३६ जिसने समवसरण जैसी सुकथिता सुलोचना कथा कही। जिस तरह समवसरण में जिनेन्द्र स्थित रहते है और धर्म कथा सुनकर राजा लोग दीक्षित होते हैं, उसी तरह सुलोचना कथा में भी जिनेन्द्र सन्निहित है और उसमें राजा ने दीक्षा ले ली है। हरिवंश पुराण के कर्ता धवल कवि ने भी सुलोचना कथा का मुणि महसेणु-सुलोयण जेण' वाक्यों के साथ उल्लेख किया है। इन सब उल्लेखों से सुलोचना कथा की महत्ता स्पष्ट है । यह किस भाषा में रची गई, इसका कोई उल्लेख नहीं मिलता। यह कथा शक सं०७०५ (वि० सं०८३५) से पूर्वरची गई है । उस समय उसका मस्तित्व था, पर बाद में कब विलुप्त हुई, इसका कोई स्पष्ट निर्देश प्राप्त नहीं है। संभव है, यह किसी अन्य भण्डार में हो। सर्वनन्दि सर्वनन्दि भट्टारक शिवनन्दि सैद्धान्तिक के शिष्य थे। प्रस्तुत सर्वनन्दि देवको शक सं० Eve (८७१ A.D) में पश्चिमी गंगवंशीय सत्य वाक्य कोगुनी वर्मन की पोर से एक दान दिया गया। Ep. c. Coorg Inscriptions (Edi 1914) No. 2 विलियूर का यह शिलालेख (Biliur Stone Inscription) का समय शक सं०८०६ (सन् ८८७) ईस्वी का है । सत्य वाक्य कोगुनी वर्मन (पश्चिमी गंग राचमल प्रथम) ने विलियर के १२ छोटे गांव hamlets शिवनन्दि
SR No.090193
Book TitleJain Dharma ka Prachin Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy