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सिद्धसेन
का प्रथम चरण है। उद्धत किया है इससे स्पष्ट है दि सिद्धसेन पूज्यपाद से भी पूर्ववर्ती हैं। पूज्यपाद का समय ईसा की ५वीं शताब्दी है । प्रतः सिद्धसेन ईसा की ५वीं शताब्दी के पूर्वाध के विद्वान जान पड़ते हैं।
जा० आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्याय ने सिद्धगेन के न्यायावतार का सम्पादन किया है। उन्होंने उसके प्राक्कथन प्र.XXU में लिखा है कि-'यह बहुत संभव है कि यह सिद्धसेन गुप्त काल के विद्वान हों। चन्द्रगप्त द्वितीय जो विक्रमादित्य के नाम से प्रसिद्ध है, और जिसका समय ३७६ से ४६४ ई० है, यही समय सिद्धसेन दिवाकर का होना संभव है। डा० सा० ने इन्हें यापनीय सम्प्रदाय का विद्वान बतलाया है। न्यायावतार के कर्मा सिद्धसेन इनसे भिन्न और बाद के विद्वान् हैं, और बे श्वेताम्बर सम्प्रदाय के विद्वान हैं। इनका समय सातवों शताब्दी है।
१. विधी जयति चासभिनं च वधेन संयुज्यते शिवं च न परोगमदं पुरुष स्मृतविद्यते । वधाय नपमन्युगति - परान्न निघ्नन्न । स्वराय मनि दुर्गमः प्रथम हेतुरुवातितः ।। १६