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________________ विषयानुक्रमणिका प्रथम परिच्छेद मानव की पाद्य संस्कृति १. जैनधर्म प्रकृति-परिवर्तन विश्व का अनादि सत्य कुलकर आत्मा का शाश्वत रूप अन्तिम कुलकर नाभिराज नाभिराज द्वारा युग-प्रवर्तन आत्मा और अनात्म का चिरकालिक संघर्ष अनात्म पर आत्म-विजय की राह २. भगवान ऋषभदेव का जन्म प्रात्म विजय के पुरस्कर्ता-जिन देवों द्वारा अयोध्या की रचना जिनदेव द्वारा उपदिष्ट मार्ग ही जैनधर्म है नाभिराज की पत्नी मरुदेवी प्राचीन माहित्य में जैन धर्म का नामोल्लेख मरदेवी का स्वप्न-दर्शन भारतीय संस्कृति की दो धाराएँ-श्रमण भगवान का गर्भावतरण और वैदिक भगवान का जन्म-महोत्सव श्रमण संस्कृति इन्द्रारामानन्द नाटक ब्रात्य भगवान का नामकरण ३. बाल्यकाल भगवान का दिव्य लालन पालन पुरातत्व और प्राम्वैदिक संस्कृति भगवान की बाल क्रीड़ाएँ २. जैनधर्म में तीर्थकर-मान्यता जन्म के दस अतिशय पंच परमेष्ठी भगवान गहस्थाश्रम में तीर्थकर धर्म नेता है, धर्म-संस्थापक नहीं भगवान का विवाह जैनधर्म में अवतारवाद नहीं है पुत्र पुत्रियों का जन्म तीर्थकरों के नाम भगवान के सौ पुत्र तीर्थंकरों के सम्बन्ध में विशेष ज्ञातव्य-- लिपि और अंक विद्या का प्राविष्कार वंश, वर्ण, विवाह पूत्रों को विविध कलाओं का प्रशिक्षण ३. तीर्थकर और प्रतीक-पूजा ५. ऋषभदेव द्वारा सोक-व्यवस्था मन्दिर निर्माण की पृष्ठभूमि वन्य संस्कृति से कृषि संस्कृति तक मृति-निर्माण का इतिहास वर्ण व्यवस्था जंग मन्दिरों की संरचना और उनका - ऋमिक विकास कवीलों से नागर सभ्यता की ओर तीर्थकरों के चिन्ह दण्ड-व्यवस्था जैन प्रतीकों का परिचय विवाह व्यवस्था भगवान का राज्याभिषेक द्वितीय परिच्छेद राज्य-संस्थापना भगवान ऋषभदेव वंश-स्थापन १. भगवान ऋषभदेव से पूर्वकालीन परिस्थिति भगवान के विविध नाम और गृहस्थ काल चक्र जीवन का काल
SR No.090192
Book TitleJain Dharma ka Prachin Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size15 MB
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