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________________ १२ ६. ऋषभदेव का वैराग्य और दीक्षा नीताना का नृत्य और मृत्यु भगवान का वैराग्य पुत्रों को राज्य विभाजन भगवान का अभिनिष्क्रमण भगवान की दीक्षा प्रयाग तीर्थ तपोभ्रष्ट मुनिवेशी मरीचि का विद्रोह : ७. भगवान मुनि-दशा में भगवान की कठोर साधना भगवान की जटायें विद्याधर जाति पर आधिपत्य राजकुमार यान्स द्वारा दानतीर्थ की प्रवृत्ति ८. भगवान को केवल्य की प्राप्ति श्रीवत्स प्राप्ति प्रक्षय वट समवसरण की रचना समवसरण और देवालय भगवान का परिवार भगवान के ८४ गणधर ९. भगवान द्वारा धर्म-त्र-प्रवर्तन भगवान का वैभव श्वेताम्बर परम्परा में मान्य चौतीस अतिशय प्रयाग में भगवान द्वारा धर्म चक्र प्रवर्तन दिव्य ध्वनि ४७ -- ५१ धर्म-पक भगवान के प्रचारक ५२ - ५६ भगवान का धर्म-विहार १०. भगवान का भ्रष्टापद पर निर्वाण कैलाश में निर्वाण ५७-६३ ६३-६० ६८-७० भगवान का निर्वाण कल्याणक सिद्धक्षेत्र कैलाश (अष्टापद) ११. नाभिराज और मदेषी जैन पुराणों में साभिराज और मरुदेवी आमागवत में नाभिराज और मरुदेवी १२. ऋषभदेव का लोकव्यापी प्रभाव ऋषभदेव से सम्बन्धित तीर्थ और पर्व श्रीमद्भागवत में ऋषभदेव भगवान ऋषभदेव और प्रमुख वैदिक देवता ऋषभदेव मोर शिवजी षभदेव और ब्रह्मा ७१-७२ ७२८५ वैदिक साहित्य के वातरशना तथा केही और भगवान ऋषभदेव जनेतर ग्रन्थों में ऋषभदेव भावनात्मक एकता के प्रतीक रूपमदेव बाहुबली खण्ड १३. भरत की धम-रात्रि ८६-८७ पुत्रोपति और भगवान को केवल ज्ञान-प्राप्ति के तीन समाचार एक समय में प्रथम केवल्य-पूजा सांसारिक कार्य बाद में १४. भरत को दिग्विजय ८७-६० दिग्विजय द्वारा चक्रवर्ती पद १५. भरत के भाई-बहनों का वैराग्य बाह्मी और सुन्दरी का दीक्षा ग्रहण भाइयों का पैराग्य १६. भरत- बाहुबली युद्ध भरत और बाहुबली का निर्णायक बाहुबली का वैराग्य पोदनपुर-निय १७. चक्रवर्तीों का जव वर्ती का राज्याभिषेक भरत का वैभव १८. भरत द्वारा वर्ष-व्यवस्था में सुधार ब्राह्मण वर्ण की स्थापना १२. भरत के सोलह स्वप्न २०. भरत को विवेह वृत्ति राजप्रासाद में वन्दनमालाएँ लोक में वन्दनमाला की परम्परा भरत की मुनि भक्ति भोग में भी विरान वृत्ति २१. भरत का निष्पक्ष न्याय सुलोचना स्वयम्बर युवराज का अन्याय युवराज की पराजय चक्रवर्ती का न्याय णमोकार मंत्र का प्रभाव जयकुमार का दीक्षा ग्रहण २२. भरत का निर्वाण २३. भरत मोर भारत युद्ध भारत का प्राचीन नाम जैन साहित्य और भारत जनेतर साहित्य और भारत ६०-६२ १२-१६ ९६-६७ 84185 ६८ - १०० १०० - १०४ १०४ - १०० १०६ १०९ - ११२
SR No.090192
Book TitleJain Dharma ka Prachin Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size15 MB
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