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________________ नारायण कृष्ण 23 कुछ लोगों का विश्वास है कि कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को ऊपर उठा लिया और सम्पूर्ण गोप और गायें उसके नीचे इन्द्र के प्रकोप से सुरक्षित रहे। हिन्दू पुराणों के इस आलंकारिक वर्णन का रहस्य न समझ कर कुछ लोग उनके शब्दों को पकड़ लेते हैं । किन्तु यह स्मरण रखना चाहिये कि हिन्दू पुराणों में गोवर्धन पर्वत उठाने ग्रालंकारिक वर्णन प्रायः मिलता है। जैसे द्रोणाचल पर जाने पर हनुमान संजीवनी बूटी नहीं का रहस्य पहचान सके तो वे द्रोणाचल को ही उठा लाये। साधारण जनता ने इसका अर्थ यही निकाला कि वे वास्तव में पर्वत को उठा लाये । किन्तु क्या पर्वत को उठा लाना संभव है, इस पर विचार नहीं किया । जैसे किसी नौकर को किसी ने साग लाने के लिये कुछ रुपये दिये। नौकर अपनी इच्छा और बुद्धि से दस पांच तरह के साग खरीद लाया । तब सागों को देखकर मालिक बोला अरे ! तू तो सारा बाजार ही उठा लाया। इसका अर्थ यह नहीं है कि वह बाजार की सारी चीजें ले आया, बल्कि इसका प्राश्य वस्तुओं की बहुलता है। इसी प्रकार गोवर्धन पर्वत को कृष्ण ने उठा लिया, इसका आशय यह नहीं है कि उन्होंने पर्वत को पकड़ कर ऊपर उठा लिया । पर्वत को ऊपर उठाना संभव भी नहीं है। इसका आशय यह है कि कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत पर रहने वाले गोपों और गायों को जिम्मेदारी उठाई। जैसे बोलचाल में कहते हैं-घर का सारा भार मेरे ऊपर है। इसका अर्थ यह नहीं है कि घर का सारा सामान और मकान वह अपने ऊपर लिये फिरता है, बल्कि इसका श्राशय यह है कि घर की सारी जिम्मेदारी मेरे ऊपर है । ऐसे ही कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाया अर्थात् उन्होंने गायों और ग्वालों को गोबर्धन पर्वत के किसी सुरक्षित स्थान पर ले जाकर हिन्दू पुराणों के अनुसार इन्द्र के प्रकोप से से अर्थात् वर्षा आदि से रक्षा की । कृष्ण की वीरता की गाथायें वसुदेव और देवकी के कानों तक पहुँचीं । देवकी का मातृ-हृदय अपने पुत्र से मिलने के लिये आतुर हो उठा। वह व्रत का बहाना करके पुत्र को देखने के लिये गोकुल पहुँची । वहाँ वह पोनस्तनी गायों और हृष्ट-पुष्ट गोप- बालकों को देखकर अत्यन्त सन्तुष्ट हुई। वह यशोदा से मिलने उसके घर पहुंची । नन्द और यशोदा अपनी स्वामिनी एवं सखो को देखकर बड़े प्रसन्न हुए और उन्होंने उसका बड़ा बातिथ्य किया। तभी बालक कृष्ण वहाँ आये । वे उस समय पीताम्बर धारी थे । सिर पर मोर पंखों का मुकुट धारण कर रक्खा था । गले में नील कमल की माला धारण कर रक्खी थी । कानों में स्वर्णाभरण धारण किए हुए थे। कलाइयों में स्वर्ण के कड़े सुशोभित थे । माथे पर दुपहरिया के फूल लटक रहे थे। उनके साथ अनेक बाल गोपाल थे । देवकी अपने पुत्र के इस अद्भुत परिधान और मनभावन रूप को अपलक देखती ही रह गई । यशोदा के कहने पर कृष्ण ने देवकी को प्रणाम किया । देवकी ने उसे अंक में भर लिया । पुत्र वात्सल्य के कारण उसके स्तनों से दूध झरने लगा । बुद्धिमान वलदेव ने रहस्य खुल जाने के भय से दूध के घड़े से माता का अभिषेक कर दिया और शीघ्र ही माता को लेकर मथुरा पहुँचा दिया | देवकी का पुत्र से मिलन कृष्ण को शer fear का शिक्षण - वसुदेव ने अपने पुत्र कृष्ण की सुरक्षा और देख-भाल के लिये अपने बड़े पुत्र बलदेव को नियुक्त कर दिया। रहस्य प्रगट न हो जाय, इसलिये बलदेव भी यदा-कदा जाकर अपने अनुज को देख पाते थे पीर वहाँ जाकर वे कृष्ण को राजकुमारोचित प्रस्त्र-शस्त्र संचालन की शिक्षा देते थे । कृष्ण अत्यन्त मेधावी थे। उन्होंने अल्पकाल में ही अस्त्र-शस्त्र संचालन में पूरी निष्णता प्राप्त कर ली। वे मल्ल-विद्या में भी पारङ्गत हो गये । चाणूर और कंस का बध -कृष्ण की शौर्य गाथायें नाना रूप में लोक में फैल रही थीं। उन्हें सुन-सुन कर कंस को विश्वास होने लगा कि मेरा शत्रु छद्म रूप में बढ़ रहा है। उसने कृष्ण को मारने के लिये नानाविध are far, किन्तु and व्यर्थ हो गये। तब ऐसी दशा में उसका चिन्तित होना स्वाभाविक था । उसके प्रत्याचारों को वसुदेव मौन होकर देख रहे थे क्योंकि वे वचनवद्ध थे । एक दिन प्रत्यन्त आश्चर्यजनक घटना हो गई। कंस के यहाँ सिंहवाहिनी नागशय्या, अजितंजय नामक
SR No.090192
Book TitleJain Dharma ka Prachin Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size15 MB
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