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________________ जैनधर्म का प्राचीन इतिहास मित्र ! इस रहस्य की तुम प्राण पुण से रक्षा करना । मैं इस भावी अर्धचकी को तुम्हें सोंप रहा हूँ । इसको तुम अपना ही बालक मानकर पालन पोषण करना ।' नन्दगोप ने जब उस राजीव लोचन श्याम सलोने कामदेव के समान सुन्दर बालक को देखा तो हर्ष से उनका रोम-रोम खिल उठा। वे बालक को लेकर चल दिये। वसुदेव और बलराम भी बालिका को लेकर उसी रहस्यमय ढंग से वापिस गये, जिस प्रकार वे धाये थे और ले जाकर देवकी को सौंप दिया। जब कंस को बहन की प्रमूर्ति का समाचार ज्ञात हुआ सा वह प्रसूति गृह में घुस गया। अब उसने बहन के बगल में कन्या देखी तो उसके मन में से भय दूर हो गया। फिर भी उसने सोचा- कदाचित् इसका पति मेरा शत्रु हो सकता है। यह विचार कर उसने कन्या को उठा लिया और उसकी नाक मसल कर उसे चपटी कर दिया। उसे यह भी विश्वास हो गया कि अद देवकी के सन्तान होना बन्द हो गया है। छतः वह निश्चित मन से वापिस लौट गया। 5 उधर सके पर उसका नाम 'कृष्ण' रखा गया। कृष्ण का वाय-जीवन-कृष्ण धीरे धीरे बढ़ने लगे। बालक की बभुत बाल-कीड़ामों को देख देख कर नन्द और यशोदा फूले नहीं समाते थे। यह बालक माता पिता की आंखों का तारा था। उसका रूप मोहक था। गांव की गोपिकायें बालक को खिलाने के बहाने वहां भातीं और उसे घण्टों तक अपलक नेत्रों से निहारती रहतीं। यही दशा वहाँ के गांवों की थी। नग्द का घर दिन रात इन गोप-गोपिकाओं से संकुल रहता था और वे बालक की एक झलक पाने के लिये व्याकुल रहते थे कृष्ण द्वारा देवियों का मान-मर्दन- एक दिन वरुण नामक एक निमित्तज्ञानी ने कंस से निवेदन किया'राजन् ! तुम्हारा घातक शत्रु उत्पन्न हो गया है और वह छद्म रूप में बढ़ रहा है। तुम उसका पता लगायो ।' निमिज्ञानी की बात सुनकर कंस को चिन्ता होने लगी। उसने तीन दिन का उपवास किया। उससे उसके पूर्वजन्म की हितैषी सात देवियाँ धाई धीर ये बोलीं- 'हम तुम्हारे पूर्व भव में किये हुए तप से सिद्ध हुई हैं। भापका हम क्या प्रिय कार्य कर सकती हैं।' कंस बोला - 'देवियो ! मेरा शत्रु कहीं उत्पन्न हो चुका है। तुम उसका पता लगाओ और उसका विनाश कर दो।' कंस की आज्ञा पाले ही वे सातों देवियां चल दीं। एक देवी भयंकर पक्षी का रूप धारण करके कृष्ण के पास पहुंची और अपनी तेज चोंचों से उन पर प्रहार करने लगी। किन्तु बालक कृष्ण ने उसकी चोंच इतनी जोर से दवाई कि वह प्राण बचाकर भागी। दूसरी देवी पूतना का रूप धारण कर बालक को विषमय स्तन पिलाने लगी । कृष्ण ने स्तन इतनी जोर से चूसा कि वह भी भयभीत होकर भाग गई। तीसरी पिशाची शकट का रूप धारण करके कृष्ण के सन्मुख भाई किन्तु कृष्ण ने उसे लात मारकर भगा दिया। I बालक कृष्ण अब कुछ बड़े हो गये । उनकी शरारतें दिनों दिन बढ़ती जाती थीं। वे निगाह बचते ही मक्खन चुराकर खाजाते थे परेशान होकर माता यशोदा ने एक दिन कृष्ण को उसली से बाँध दिया। तभी दो देवियाँ जमल और अर्जुन वृक्ष का रूप धारण करके कृष्ण को मारने प्रायीं । किन्तु कृष्ण ने उन्हें धराशायी कर दिया। एक दिन एक देवी मत बैल का रूप बनाकर भाई वह बेत गोपों की बस्ती में भयंकर शब्द करता हुआ फिरने लगा। फिरता हुआ वह घोर गर्जना करता हुआ कृष्ण की घोर झपटा। कृष्ण यमराज के समान उस भयंकर बैल को प्राते देखकर जरा भी विचलित नहीं हुए। उन्होंने बैल की गर्दन जोरों से पकड़ कर मरोड़ दी। बेचारी देवी अपने प्राण बचाकर भागी। जब वे छह देवियों असफल होकर लौट गई तो सातवीं देवी को भयंकर शोध माया । उसने गोकुल के ऊपर पाषाण और जल की भयंकर वर्षा प्रारम्भ कर दी। गोकुल वासी सम्पूर्ण गोप और गाये व्याकुल होकर इधर उधर भागने लगे तब कृष्ण ने सबको एक जगह गोवर्धन पर्वत के ऊपर एकत्रित किया और सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दिया। इस प्रकार उन्होंने सारे गोवर्धन का भार उठा लिया अर्थात् गोवर्धन पर्वत पर रहने वाले गांवों और गायों को रक्षा का दायित्व उन्होंने ग्राने कार ले लिया और सफलतापूर्वक उसे पूरा किया।
SR No.090192
Book TitleJain Dharma ka Prachin Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size15 MB
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